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आगम-सम्पादन का यह ऐतिहासिक कार्य पूज्य गुरुदेव की पुण्य-स्मृति में आयोजित किया गया है। आज उनका पुण्यस्मरण मेरे मन को उल्लसित कर रहा है। साथ ही मेरे वन्दनीय गुरु-भ्राता पूज्य स्वामी श्री हजारीमलजी महाराज की प्रेरणाएँ, उनकी आगम-भक्ति तथा आगम सम्बन्धी तलस्पर्शी ज्ञान, प्राचीन धारणाएँ, मेरा सम्बल बनी हैं। अतः मैं उन दोनों स्वर्गीय आत्माओं की पुण्यस्मृति में विभोर हूँ।
शासनसेवी स्वामीजी श्री ब्रजलालजी महाराज का मार्गदर्शन, उत्साह-संवर्धन, सेवाभावी शिष्य मुनि विनयकुमार व महेन्द्रमुनि का साहचर्य-बल, सेवा-सहयोग तथा महासती श्री कानकुंवरजी, महासती श्री झणकारकुंवरजी, परमविदुषी साध्वी श्री उमरावकुंवरजी अर्चना' की विनम्र प्रेरणा मुझे सदा प्रोत्साहित तथा कार्यनिष्ठ बनाये रखने में सहायक रही हैं।
मुझे दृढ़ विश्वास है कि आगम-वाणी के सम्पादन का यह सुदीर्घ प्रयत्न-साध्य कार्य सम्पन्न करने में मुझे सभी सहयोगियों, श्रावकों व विद्वानों का पूर्ण सहकार मिलता रहेगा और मैं अपने लक्ष्य तक पहुँचने में गतिशील बना रहूँगा।
इसी आशा के साथ .......
– मुनि मिश्रीमल 'मधुकर' पुनश्च:
मेरा जैसा विश्वास था उसी रूप में आगमसम्पादन का कार्य सम्पन्न हुआ और होता जा रहा है। . १. श्रीयुत् श्रीचन्दजी सुराणा 'सरस' ने आचारांग सूत्र का सम्पादन किया।
२. श्रीयुत् डा. छगनलालजी शास्त्री ने उपासकदशा सूत्र का सम्पादन किया। ३. श्रीयुत् पं. शोभाचन्दजी सा. भारिल्ल ने ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र का सम्पादन किया। ४. विदुषी साध्वीजी श्री दिव्यप्रभाजी ने अंतकृद्दशासूत्र का सम्पादन किया। ५. विदुषी साध्वीजी मुक्तिप्रभाजी ने अनुत्तरौपपातिकसूत्र का सम्पादन किया। ६. स्व. पं. श्री हीरालालजी शास्त्री ने स्थानांगसूत्र का सम्पादन किया। सम्पादन के साथ इन सभी आगमग्रन्थों का प्रकाशन भी हो गया है। उक्त सभी विद्वानों का मैं आभार मानता है
इन सभी विद्वानों के सतत सहयोग से ही यह आगमसम्पादन-कार्य सुचारू रूप से प्रगति के पथ पर अग्रसर होता जा रहा है।
श्रीयुत् पं०र० श्री देवेन्द्रमुनिजी म. ने आगमसूत्रों पर प्रस्तावना लिखने का जो महत्त्वपूर्ण बीड़ा उठाया है, इसके लिए उन्हें शत्-शत् साधुवाद।
यद्यपि इस आगममाला के प्रधान सम्पादक के रूप में मेरा नाम रखा गया है परन्तु मैं तो केवल इसका संयोजक मात्र हूँ। श्रीयुत् श्रद्धेय भारिल्लजी ही सही रूप में इस आगममाला के प्रधान सम्पादक हैं।
भारिल्लजी का आभार प्रकट करने के लिए मेरे पास शब्दावली नहीं है।
इस आगमसम्पादन में जैसी सफलता प्रारम्भ में मिली है वैसी ही भविष्य में भी मिलती रहेगी, इसी आशा के साथ। दिनांक १३ अक्टूबर, १९८१
(युवाचार्य) मधुकरमुनि नोखा चान्दावताँ (राजस्थान)
[प्रथम संस्करण से]