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________________ ४४ स्थानाङ्गसूत्रम् दुविहा आउकाइया पण्णत्ता, तं जहा— अणंतरोगाढा चेव, परंपरोगाढा चेव। १४७- दुविहा तेउकाइया पण्णत्ता, तं जहा— अणंतरोगाढा चेव, परंपरोगाढा चेव। १४८- दुविहा वाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा- अणंतरोगाढा- चेव, परंपरोगाढा चेव। १४९- दुविहा वणस्सइकाइया पण्णत्ता, तं जहाअणंतरोगाढा चेव, परंपरोगाढा चेव। पृथ्वीकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं- अनन्तरावगाढ (वर्तमान एक समय में किसी आकाश-प्रदेश में स्थित) और परम्परावगाढ (दो या अधिक समयों से किसी आकाश-प्रदेश में स्थित) (१४५)। अप्कायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं—अनन्तरावगाढ और परम्परावगाढ (१४६)। तेजस्कायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं—अनन्तरावगाढ और परम्परावगाढ (१४७)। वायुकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं—अनन्तरावगाढ और परम्परावगाढ (१४८)। वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं—अनन्तरावगाढ और परम्परावगाढ (१४९)। द्रव्य-पद १५०- दुविहा दव्वा पण्णत्ता, तं जहा—अणंतरोगाढा चेव, परंपरोगाढा चेव। १५१दुविहा काले पण्णत्ते, तं जहा ओसप्पिणीकाले चेव, उस्सप्पिणीकाले चेव। १५२ - दुविहे आगासे पण्णत्ते, तं जहा लोगागासे चेव, अलोगागासे चेव। द्रव्य दो प्रकार के कहे गये हैं—अनन्तरावगाढ और परम्परावगाढ (१५०)। काल दो प्रकार का कहा गया है- अवसर्पिणीकाल और उत्सर्पिणीकाल (१५१)। आकाश दो प्रकार का कहा गया है—लोकाकाश और अलोकाकाश (१५२)। शरीर-पद १५३–णेरइयाणं दो सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा—अब्भंतरगे चेव, बाहिरगे चेव। अब्भंतरए कम्मए, बाहिरए वेउव्विए। १५४ - देवाणं दो सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा—अब्भंतरगे चेव, बाहिरगे चेव। अब्भंतरए कम्मए, बाहिरए वेउव्विए। १५५- पुढविकाइयाणं दो सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा - अब्भंतरगे चेव, बाहिरगे चेव। अब्भंतरगे कम्मए, बाहिरगे ओरालिए जाव वणस्सइकाइयाणं। १५६– बेइंदियाणं दो सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा—अब्भंतरगे चेव, बाहिरगे चेव। अब्भंतरगे कम्मए, अट्ठिमंससोणितबद्धे बाहिरगे ओरालिए। १५७– तेइंदियाणं दो सरीरा पण्णत्ता, तं जहा—अब्भंतरगे चेव, बाहिरगे चेव। अब्भंतरगे कम्मए, अट्ठिमंससोणितबद्धे बाहिरगे ओरालिए। १५८- चउरिदियाणं दो सरीरा पण्णत्ता, तं जहा— अब्भंतरगे चेव, बाहिरगे चेव। अब्भंतरगे कम्मए, अट्ठिमंससोणितबद्धे बाहिरगे ओरालिए। १५९- पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं दो सरीरंगा पण्णत्ता, तं जहा—अब्भंतरगे चेव, बाहिरगे चेव। अब्भंतरगे कम्मए, अट्ठिमंससोणियोहारुछिराबद्धे बाहिरगे ओरालिए। १६०– मणुस्साणं दो सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा—अब्भंतरगे चेव, बाहिरगे चेव। अब्भंतरगे कम्मए, अट्ठिमंससोणियोहारुछिराबद्धे बाहिरगे ओरालिए। १६१- विग्गहगइसमावण्णगाणं णेरड्याणं दो सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा तेयए चेव, कम्मए चेव। णिरंतरं जाव वेमाणियाणं। १६२– णेरइयाणं दोहिं
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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