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________________ द्वितीय स्थान प्रथम उद्देश वाले श्रुत को कालिक श्रुत कहते हैं। जैसे—उत्तराध्ययनादि। अकाल के सिवाय सभी पहरों में पढ़े जाने वाले श्रुत को उत्कालिक श्रुत कहते हैं। जैसे दशवैकालिक आदि। धर्मपद १०७- दुविहे धम्मे पण्णत्ते, तं जहा—सुयधम्मे चेव, चरित्तधम्मे चेव। १०८– सुयधम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा सुत्तसुयधम्मे चेव, अत्थसुयधम्मे चेव। १०९- चरित्तधम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा- अगारचरित्तधम्मे चेव, अणगारचरित्तधम्मे चेव। धर्म दो प्रकार का कहा गया है—श्रुतधर्म (द्वादशाङ्गश्रुत का अभ्यास करना) और चारित्रधर्म (सम्यक्त्व, व्रत, समिति आदि का आचरण) (१०७)। श्रुतधर्म दो प्रकार का कहा गया है—सूत्र-श्रुतधर्म (मूल सूत्रों का अध्ययन करना) और अर्थ-श्रुतधर्म (सूत्रों के अर्थ का अध्ययन करना) (१०८)। चारित्रधर्म दो प्रकार का कहा गया है—अगारचारित्रधर्म (श्रावकों का अणुव्रत आदि रूप धर्म) और अनगारचारित्रधर्म (साधुओं का महाव्रत आदि रूप धर्म) (१०९)। संयम-पद ११०– दुविहे संजमे पण्णत्ते, तं जहा—सरागसंजमे चेव, वीतरागसंजमे चेव। १११सरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा सुहुमसंपरायसरागसंजमे चेव, बादरसंपरायसरागसंजमे चेव। ११२ – सुहुमसंपरायसरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—पढमसमयसुहुमसंपरायसरागसंजमे चेव, अपढमसमयसुहमसंपरायसरागसंजमे चेव । अहवा–चरिमसमयसुहमसंपरायसरागसंजमे चेव, अचरिमसमयसुहुमसंपरायसरागसंजमे चेव। अहवा–सुहमसंपरायसरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहासंकिलेसमाणए चेव, विसुज्झमाणए चेव। ११३ – बादरसंपरायसरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहापढमसमयबादरसंपरायसरागसंजमे चेव, अपढमसमयबादरसंपरायसरागसंजमे चेव । अहवाचरिमसमयबादरसंपरायसरागसंजमे चेव, अचरिमसमयबादरसंपरायसरागसंजमे चेव । अहवाबादरसंपरायसरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—पडिवातिए चेव, अपडिवातिए चेव। संयम दो प्रकार का कहा गया है—सरागसंयम और वीतरागसंयम (११०)। सरागसंयम दो प्रकार का कहा गया है—सूक्ष्मसाम्पराय सरागसंयम और बादरसाम्पराय सरागसंयम (१११) । सूक्ष्मसाम्पराय सरागसंयम दो प्रकार का कहा गया है—प्रथमसमय-सूक्ष्मसाम्पराय सरागसंयम और अप्रथमसमय-सूक्ष्मसाम्परायसरागसंयम। अथवा चरमसमय सूक्ष्मसाम्परायसरागसंयम और अचरमसमय सूक्ष्मसाम्परायसरागसंयम। अथवा सूक्ष्मसाम्पराय सरागसंयम दो प्रकार का कहा गया है संक्लिश्यमान सूक्ष्मसाम्परायसरागसंयम (ग्यारहवें गणस्थान से गिर कर दशवें गुणस्थानवर्ती साधु का संयम संक्लिश्यमान होता है) और विशुद्ध्यमान सूक्ष्मसाम्परायसरागसंयम (दशवें गुणस्थान से ऊपर चढ़ने वाले का संयम विशुद्ध्यमान होता है) (११२) । बादरसाम्परायसरागसंयम दो प्रकार का कहा गया है—प्रथमसमय-बादरसाम्परायसरागसंयम और अप्रथमसमय-बादरसाम्परायसरागसंयम। अथवा चरमसमयबादरसाम्परायसरागसंयम और अचरमसमय-बादरसाम्परायसरागसंयम। अथवा बादरसाम्परायसरागसंयम दो प्रकार का कहा गया है—प्रतिपाती बादरसाम्परायसरागसंयम (नवम गुणस्थान से नीचे गिरनेवाले का संयम) और
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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