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[ सूत्रकृतांगसूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध नहीं करता, न दूसरों से परिग्रह कराता है, और न ही उनका परिग्रह करने वाले व्यक्ति का अनुमोदन करता है। इस कारण से वह भिक्ष महान् कर्मों के आदान (ग्रहण या बन्ध) से मुक्त हो जाता है, शुद्धसंयम-पालन में उपस्थित करता है, और पापकर्मों से विरत हो जाता है ।
६८६-से भिक्खू जं पि य इमं संपराइयं कम्मं कज्जइ णो तं सयं करेति, नेवऽन्नेणं कारवेति, अन्न पि करेंतं णाणुजाणति, इति से महता आदाणातो उवसंते उवट्टिते पडिविरते ।
६८६-जो यह साम्परायिक (संसारपरिभ्रमण का हेतु कषाययुक्त) कर्म-बन्ध (सांसारिकजनों द्वारा) किया जाता है, उसे भी वह भिक्ष स्वयं नहीं करता, न दूसरों से कराता है, और न ही साम्परायिक कर्म-बन्धन करते हुए व्यक्ति का अनुमोदन करता है। इस कारण वह भिक्ष महान कर्मों के बन्धन (आदान) से मुक्त हो जाता है, वह शुद्ध संयम में रत और पापों से विरत रहता है।
६८७–से भिक्ख जं पुण जाणेज्जा असणं वा ४ अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियं समुहिस्स पाणाई भूयाइं जीवाई सत्ताई समारंभ समुद्दिस्स कीतं पामिच्चं अच्छेजं अणिसट्ठ अभिहडं पाहटुद्देसिय चेतियं सिता तं णो सयं भुजइ, णो वनणं भुजावेति, अन्न पि भुजंतं ण समणुजाणइ, इति से महता प्रादाणातो उवसंते उवट्टिते पडिविरते से भिक्खू ।
६८७-यदि वह भिक्ष यह जान जाए कि अमुक श्रावक ने किसी निष्परिग्रह सार्मिक साध को दान देने के उद्देश्य से प्राणों. भतों, जीवों और सत्त्वों का प्रारम्भ करके आहार बनाया है, अथवा खरीदा है, या किसी से उधार लिया है, अथवा बलात् छीन कर (अपहरण करके) लिया है, अथवा उसके स्वामी से पूछे बिना ही ले लिया (उसके स्वामित्व का नहीं) है, अथवा साधु के सम्मुख लाया हुआ है, अथवा साधु के निमित्त से बनाया हुअा है, तो ऐसा सदोष आहार वह न ले । कदाचित् भूल से ऐसा सदोष आहार ले लिया हो तो स्वयं उसका सेवन न करे, दूसरे साधुओं को भी वह आहार न खिलाए, और न ऐसा सदोष आहार-सेवन करने वाले को अच्छा समझे। इस प्रकार के सदोष आहारत्याग से वह भिक्ष महान् कर्मों के बन्धन से दूर रहता है, वह शुद्ध संयम पालन में उद्यत और पाप कर्मों से विरत रहता है ।
६८८-ग्रह पुणेवं जाणेज्जा, तं जहा-विज्जति तेसि परक्कमे जस्सट्टाते चेतितं सिया, तंजहाअप्पणो से, पुत्ताणं, धूयाणं, सुण्हाणं, धाईणं, णाईणं, राईणं, दासाणं, दासीणं, कम्मकराणं, कम्मकरीणं, प्रादेसाए, पुढो पहेणाए सामासाए, पातरासाए,सण्णिधिसंणिचए कज्जति इहमेगेसि माणवाणं भोयणाए। तस्थ भिक्खू परकड-परणिट्टितं उग्गमुप्पायणेसणासुद्ध सत्थातीतं सत्थपरिणामितं अविहिसितं एसियं वेसियं सामुदाणियं पण्णमसणं कारणट्ठा पमाणजुत्तं प्रक्खोवंजण-वणलेवणभूयं संजमजातामातावुत्तियं बिलमिव पन्नगभूतेणं अप्पाणेणं पाहारं पाहारेज्जा, तंजहा-अन्न अन्नकाले, पाणं पाणकाले, वत्थं वत्थकाले, लेणं लेणकाले, सयणं सयणकाले।
६८८-यदि साधु यह जान जाए कि गृहस्थ ने जिनके लिए आहार बनाया है वे साधु नहीं, अपितु दूसरे हैं; जैसे कि गृहस्थ ने अपने पुत्रों के लिए अथवा पुत्रियों, पुत्रवधुओं के लिए, धाय के