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________________ अनाचारभुत : पंचम अध्ययन : सूत्र ७६८-७७४ ] [१५३ _ ७६७-धर्म-अधर्म नहीं है, ऐसी मान्यता नही रखनी चाहिए, किन्तु धर्म भी है और अधर्म भी है ऐसी मान्यता रखनी चाहिए। ७६८–णस्थि बंधे व मोक्खे वा, गेवं सणं निवेसए। अस्थि बंधे व मोक्खे वा, एवं साणं निवेसए ॥१५॥ ७६८–बन्ध और मोक्ष नहीं है, यह नहीं मानना चाहिए, अपितु बन्ध है और मोक्ष भी है, यही श्रद्धा रखनी चाहिए। ७६६–णत्थि पुण्णे व पावे वा, णेवं सण्णं निवेसए । अत्थि पुण्णे व पावे वा, एवं सण्णं निवेसए ॥१६॥ ७६६-पुण्य और पाप नहीं है, ऐसी बुद्धि रखना उचित नहीं, अपितु पुण्य भी है और पाप भी है, ऐसी बुद्धि रखना चाहिए। ७७०–णस्थि पासवे संवरे वा, गेवं सण्णं निवेसए। अस्थि पासवे संवरे वा, एवं सण्णं निवेसए ॥१७॥ ७७०-आश्रव और संवर नहीं है, ऐसी श्रद्धा नहीं रखनी चाहिए, अपितु आश्रव भी है, संवर भी है, ऐसी श्रद्धा रखनी चाहिए। ७७१–णत्थि वेयणा निज्जरा वा, गेवं सणं निवेसए। अस्थि वेयणा निज्जरा वा, एवं सणं निवेसए ॥१८॥ ७७१–वेदना और निर्जरा नहीं हैं, ऐसी मान्यता रखना ठीक नहीं है किन्तु वेदना और निर्जरा है, यह मान्यता रखनी चाहिए। ७७२-नस्थि किरिया प्रकिरिया वा, णेवं सण्णं निवेसए। अत्थि किरिया प्रकिरिया वा, एवं सण्णं निवेसए ॥१९॥ ७७२-क्रिया और प्रक्रिया नहीं है, ऐसी संज्ञा नहीं रखनी चाहिए, अपितु क्रिया भी है, प्रक्रिया भी है, ऐसी मान्यता रखनी चाहिए। ७७३–नस्थि कोहे व माणे बा, णेवं सणं निवेसए। __ अस्थि कोहे व माणे वा, एवं सणं निवेसए ॥२०॥ ७७३ - क्रोध और मान नहीं हैं, ऐसी मान्यता नहीं रखनी चाहिए, अपितु क्रोध भी है, और मान भी है, ऐसी मान्यता रखनी चाहिए। ७७४-नस्थि माया व लोमे वा, गेवं सणं निवेसए।' अस्थि माया व लोमे वा, एवं सणं निवेसए ॥२१॥
SR No.003439
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages282
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_sutrakritang
File Size20 MB
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