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अष्टम क्रियास्थान : श्रध्यात्मप्रत्ययिक नौवाँ क्रियास्थान : मान प्रत्ययिक
दसवां क्रियास्थान : मित्र दोष प्रत्ययिक ग्यारहवां क्रियास्थान: माया प्रत्ययिक बारहवां क्रियास्थान : लोक प्रत्ययिक
७०७
तेरहवाँ क्रियास्थान : ऐर्यापथिक, अधिकारी स्वरूप, प्रक्रिया एवं सेवन ७०८-१० अधर्मपक्षनामक प्रथम स्थान के विकल्प : चर्या अधिकारी : स्वरूप धर्मपक्ष नामक द्वितीय स्थान के विकल्प
७०२
७०३
७०४
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७०६
७११
७१२-१६ तृतीय स्थान मिश्र पक्ष का अधिकारी एवं स्वरूप
७१७-२० दोनों स्थानों में सबका समावेश : क्यों, कैसे और पहचान ७२१ तेरह ही क्रियास्थानों का प्रतिफल
हारपरिज्ञा : तृतीय अध्ययन : पृष्ठ १०६ से १३१
प्राथमिक
७३२
७३३
७२२-३१ अनेकविध वनस्पतिकायिक जीवों की उत्पत्ति, स्थिति, संवृद्धि एवं आहार की प्रक्रिया नानाविध मनुष्यों की उत्पत्ति, स्थिति, संवृद्धि एवं आहार की प्रक्रिया [देव-नारकों का आहार, स्त्री-पुरुष एवं नपुंसक की उत्पत्ति का रहस्य ] पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों की उत्पत्ति, स्थिति, संवृद्धि एवं आहार की प्रक्रिया विकलेन्द्रिय त्रस प्राणियों की उत्पत्ति, स्थिति, संवृद्धि और आहार की प्रक्रिया काय, अग्निकाय, वायुकाय और पृथ्वीकाय के आहारादि का निरूपण ७४०-४६ समुच्चय रूप से सब जीवों की आहारादि प्रक्रिया और आहार - संयम- प्रेरणा
७३८
७३९
प्रत्याख्यान क्रिया : चतुर्थ अध्ययन : पृष्ठ १३२ से १४५
प्राथमिक
७४७
अप्रत्याख्यानी श्रात्मा का स्वरूप और प्रकार
७४८-४९ प्रत्याख्यान क्रिया रहित सदैव पापकर्म बन्धकर्ता : क्यों और कैसे
७५०-५२ संज्ञी-प्रसंज्ञी अप्रत्याख्यानीः सदैव पाप कर्मरत [ समाधान : दो दृष्टान्तों द्वारा ] संयत, विरत पापकर्म प्रत्याख्यानी: कौन और कैसे
७५३
अनाचारश्रुत: पंचम अध्ययन : पृष्ठ १४६ से १६३
प्राथमिक
७५४
अनावरणीय का निषेध
७५५-६४ अनाचार के निषेधात्मक विवेकसूत्र
७६५-८१ नास्तिकता और आस्तिकता के आधारभूत संज्ञाप्रधान सूत्र
६२
६३
६४
६५
६६
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७१
[ १५ ]
८४
८५
९९
१०९
१०६-१०७
१०८ ११८
. १२१
१२४
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१३२
१३
१३६
१४०
१४४
[लोक-लोक, जीव-प्रजीव, धर्म-अधर्म, बन्ध और मोक्ष, पुण्य और पाप, आश्रव-संवर, वेदना और निर्जरा, क्रिया और प्रक्रिया, क्रोध, मान, माया और लोभ, राग और द्वेष, देव और देवी, सिद्धि और प्रसिद्धि, साधु और असाधु ]
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