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आहारपरिज्ञा : तृतीय अध्ययन ]
[ १०७ - बीजकायों के आहार की चर्चा से अध्ययन का प्रारम्भ होकर क्रमशः पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु
तथा त्रसजीवों में पंचेन्द्रिय देव-नारकों के आहार की चर्चा छोड़कर मनुष्य एवं तिर्यंच के आहार की चर्चा की गई है। साथ ही प्रत्येक जीव की उत्पत्ति, पोषण, संवर्द्धन आदि की पर्याप्त चर्चा
की है। । अाहार प्राप्ति में हिंसा की सम्भावना होने से साधु वर्ग को संयम नियमपूर्वक निर्दोष शुद्ध
आहार ग्रहण करने पर जोर दिया गया है।' - यह अध्ययन सूत्र ७२२ से प्रारम्भ होकर सूत्र ७४६ पर पूर्ण होता है।
१. (क) सूत्रकृतांग नियुक्ति गा १६९ से १७३ तक
(ख) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक ३४२ से ३४६ तक का सारांश