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________________ O 5 द्वितीय उद्देशक में नियतिवाद, अज्ञानवाद, चार प्रकार से बद्ध कर्म उपचित (गाढ) नहीं होता, इस प्रकार के बौद्धों के वाद का वर्णन है । * [] चतुर्थ उद्दे शक में पर-वादियों की असंयमी गृहस्थों के आचार के साथ सदृशता बताई गई है । अन्त में अविरतिरूप कर्मबन्धन से बचने के लिए अहिंसा, समता, कषायविजय आदि स्वसमय (स्वसिद्धान्त) का प्रतिपादन किया गया है। 0 तृतीय उद्दे शक में आधाकर्म आहार सेवन से होने वाले दोष बताये गए हैं। इसके पश्चात् विभित्र कृतवादों (जगत्-कर्तृत्ववादों), तथा स्व-स्वमत से मोक्षप्ररूपकवाद का निरूपण है । स्व- समय प्रसिद्ध कर्मबन्धन के ५ हेतुओं - मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग की दृष्टि से पर समय (दूसरे दर्शनों, वादों और मतों के आचार-विचार ) को बन्धनकारक बता कर उस बन्धन से छुटने का स्व-समय प्रसिद्ध उपाय इस अध्ययन में वर्णित है । " प्रस्तुत प्रथम अध्ययन सूत्र संख्या १ से प्रारम्भ होकर सूत्र ८८ पर समाप्त होता है । सूत्रकृतांग में वर्णित वादों के साथ बौद्ध ग्रन्थ सुत्तपिटक के दीघनिकायान्तर्गत ब्रह्मजाल सूत्र में वर्णित ६२ वादों की क्वचित् क्वचित् समानता प्रतीत होती है। ४ (क) सूत्रकृतांग नियुक्ति गा० ६१ ५ (क) सूत्रकृतांग नियुक्ति गा० ३२ (पूर्वा) ६ (क) सूत्रकृतांग नियुक्ति गा० ३२ ( उत्तरार्द्ध ) 00 (ख) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक ११ (ख) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक ११ (ख) सूत्रकृतांग शीलक वृत्ति पत्रांक ११ ७ (क) सूत्रकृतांग सूत्र (सूयगडंग सुत्त) मुनि जम्बूविजय जी सम्पादित प्रस्तावना पृ० ६-७ (ख) सूत्रकृतांग ( प्र० श्र०) पं० मुनि हेमचन्द्र जी कृत व्याख्या - उपोद्घात पृ० २० सूयगडंग सुत, मुनि जम्बूविजय जी सम्पादित प्रस्तावना पृ० ६-७
SR No.003438
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages565
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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