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________________ ४५५ सूत्रकृतांग-सोलहवां अध्ययन-गाथा शास्त्रकार ने निर्ग्रन्थ के लिए एक, एकवित्, बुद्ध, संच्छिन्नस्रोत, सुसंयत, सुसमित, सुसामायित, आत्मवाद-प्राप्त, स्रोतपरिच्छिन्न, अपूजा-सत्कार-लाभार्थी, आदि विशिष्ट गुण अनिवार्य बताये हैं। क्योंकि एक आदि गुणों के तत्त्वों का परिज्ञान होने पर ही संग, संयोग, सम्बन्ध, सहायक, सुख-दुःखप्रदाता आदि की ग्रन्थि टूटती है। साथ ही विधेयात्मक गुणों के रूप में धर्मार्थी, धर्मवेत्ता, नियागप्रतिपन्न, समत्वचारी, दान्त, भव्य एवं व्युत्सृष्टकाय आदि विशिष्ट गुणों का विधान भी किया है जो राग-द्वेष, वैर, मोह, हिंसादि पापों की ग्रन्थि से बचाएमा । अतः वास्तव में निर्ग्रन्थत्व के इन गुणों से सुशोभित साधु ही निग्रंन्थ कहलाने का अधिकारी है। इस प्रकार माहन, श्रमण, भिक्षु और निर्ग्रन्थ के उत्तरोत्तर विशिष्ट गुणात्मक स्वरूप भगवान महावीर ने बताये हैं । ये सब भिन्न-भिन्न शब्द और विभिन्न प्रवृत्ति निमित्तक होते हुए भी कथ चित् एकार्थक हैं, परस्पर अविनाभावी हैं। .. - आप्त पुरुष के इस कथन की सत्यता में संदेह नहीं-प्रस्तुत अध्ययन एवं श्रुतस्कन्ध का उपसंहार करते हुए श्री सुधर्मास्वामी श्री जम्बूस्वामी आदि शिष्यवर्ग से अपने द्वारा उक्त कथन की सत्यता को प्रमाणित करते हुए कहते हैं कि मेरे पूर्वोक्त कथन की सत्यता में किसी प्रकार की शंका न करें, क्योंकि मैंने वीतराग आप्त, सर्वजीवहितैषी, भयत्राता, तीर्थंकर द्वारा उपदिष्ट बातें ही कहीं हैं। वे अन्यथा उपदेश नहीं करते। . ॥ गाहा (गाथा) : षोडस अध्ययन समाप्त ॥ सूत्रकृतांग प्रथम श्रुतस्कन्ध सम्पूर्ण २ सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक २६५ पर से
SR No.003438
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages565
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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