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गाथा : षोडश अध्ययन
प्राथमिक D सूत्रकृतांग सूत्र (प्र० श्रु०) के सोलहवें अध्ययन का नाम 'गाथा' है । · गाथा-शब्द गृह, अध्ययन, ग्रन्थ-प्रकरण, छन्द विशेष, आर्या गीति, प्रशंसा, प्रतिष्ठा, निश्चय आदि
अर्थों में प्रयुक्त होता है।' - नियुक्तिकार के अनुसार नाम, स्थापना के अतिरिक्त द्रव्यगाथा और भावगाथा, यों चार निक्षेप
होते हैं । पुस्तकों में या पन्नों पर लिखी हुई गाथा (प्राकृत भाषा में पद्य) द्रव्यगाथा है। 'गाथा' के प्रति क्षायोपशमिक भाव से निष्पन्न साकारोपयोग-भावगाथा है। क्योंकि समग्र श्रुत (शास्त्र) क्षयोपशमभाव में और साकारोपयोग-युक्त माना जाता है, श्रुत में निराकारोपयोग
सम्भव नहीं है। - प्रस्तुत अध्ययन द्रव्यगाथा से सम्बन्धित है। नियुक्तिकार और वृत्तिकार ने प्रस्तुत अध्ययन को
द्रव्यगाथा की दृष्टि से गाथा कहने के पीछे निम्नोक्त विश्लेषण प्रस्तुत किया है-(१) जिसका उच्चारण मधुर, कर्णप्रिय एवं सुन्दर हो, वह मधुरा (मधुर शब्द निर्मिता) गाथा है, (२) जो मधुर अक्षरों में प्रवृत्त करके गाई या पढ़ी जाए, वह भी गाथा है, (३) जो गाथा (सामुद्र) छन्द में रचित मधुर प्राकृत शब्दावली से युक्त हो, वह गाथा है, (४) जो छन्दोबद्ध न होकर भी गद्यात्मक गेय पाठ हो, इस कारण इसका नाम भी गाथा है, (५) जिसमें बहुत-सा अर्थ-समूह एकत्र करके समाविष्ट किया गया हो अर्थात्-पूर्वोक्त १५ अध्ययनों में कथित अर्थों (तथ्यों) को पिण्डित- एकत्रित करके प्रस्तुत अध्ययन में समाविष्ट किये जाने से इस अध्ययन का नाम 'गाथा' रख गया है, अथवा (६) पूर्वोक्त १५ अध्ययनों में साधुओं के जो क्षमा आदि गुण विधि-निषेधरूप में बताए गए हैं, वे इस सोलहवें अध्ययन में एकत्र करके प्रशंसात्मक रूप में कहे जाने के कारण इस अध्ययन को 'गाथा' एवं 'गाथा षोडशक' भी कहते हैं। प्रस्तुत अध्ययन में श्रमण, माहन, भिक्षु और निर्ग्रन्थ का स्वरूप पृथक-पृथक गुणनिष्पन्न-निर्वचन करके प्रशंसात्मकरूप से बताया गया है। यह अध्ययन समस्त अध्ययनों का सार है, गद्यात्मक है तथा सूत्र संख्या ६३२ से प्रारम्भ होकर ६३७ पर समाप्त होता है।
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१ पाइअसद्दमहण्णवो, पृष्ठ २६३ २ (क) सूत्रकृतांग नियुक्ति गा० १३७ से १४१ तक (ख) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक २६१-२६२