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________________ गंथो : चउद्दसमं अज्झयणं ग्रन्थ : चतुर्दश अध्ययन ग्रन्थ त्यागी के लिए गुरुकुलवास का महत्त्व और लाभ ५८० गंथं विहाय इह सिक्खमाणो, उट्ठाय सुबंभचेरं वसेज्जा । ओवायकारी विजयं सुसिक्खे, जे छेए विप्पमादं न कुज्जा ॥१॥ ५८१ जहा दियापोतमपत्तजातं, सावासगा पविउं मण्णमाणं । तमचाइयं तरुणमपत्त जातं, ढंकादि अव्वत्तगमं हरेज्जा ||२|| ५८२ एवं तु सेहं पि अपुट्ठधम्मं, निस्सारियं वुसिमं मण्णमाणा । दियरस छावं व अपत्त जातं, हरिसु णं पावधम्मा अणेगे ||३|| ५८३ ओसाणमिच्छे मणुए समाहि, अणोसिते गंतकरे ति णच्चा । ओभासमाणो दवियस्स वित्तं, ण णिक्कसे बहिया आसुपण्णे ||४|| ५८४ जे ठाणओ या सयणासणे या, परक्कमे यावि सुसाधुजुत्ते । समितीस गुत्तीसु य आयपण्णे, वियागरते य पुढो वदेज्जा ||५|| ५८०. इस लोक में बाह्य आभ्यन्तर ग्रन्थ- परिग्रह का त्याग करके प्रब्रजित होकर मोक्षमार्गप्रतिपादक शास्त्रों के ग्रहण, (अध्ययन), और आसेवन - (आचरण) रूप में गुरु से सीखता हुआ साधक सम्यक्रूप से ब्रह्मचर्य (नवगुप्ति सहित ब्रह्मचर्य या संयम में) स्थित रहै अथवा गुरुकुल में वास करे । आचार्य या गुरु के सान्निध्य में अथवा उनकी आज्ञा में रहता हुआ शिष्य विनय का प्रशिक्षण ले । (संयम या गुरु आज्ञा के पालन में ) निष्णात साधक ( कदापि ) प्रमाद न करे । ५८१-५८२. जैसे कोई पक्षी का बच्चा पूरे पंख आये बिना अपने आवासस्थान (घोंसले ) से उड़कर अन्यत्र जाना चाहता है, वह तरुण - (बाल) पक्षी उड़ने में असमर्थ होता है । थोड़ा-थोड़ा पंख फड़फड़ाते देखकर ढंक आदि मांस-लोलुप पक्षी उसका हरण कर लेते हैं और मार डालते हैं ।
SR No.003438
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages565
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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