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पृष्ठ
१०६-११० १११ से १३१
१११ ११५
११७
११६ १२० १२२ १२५
१२६ १३१ से १५५
१३५
१३६
१३८
( ४१ ) सूत्रांक
वैतालोय : द्वितीय अध्ययन : पृष्ठ १०६ से १७६
प्राथमिक-परिचय प्रथम उद्देशक १६-६२
भगवान ऋषभदेव द्वारा अठानवें पुत्रों को सम्बोध ६३-६४
अनित्यभाव-दर्शन ६५-६६
कर्म-विपाक दर्शन
मायाचार का कटुफल १८-१००
पाप-विरति उपदेश
परीषह-सहन उपदेश १०४-१०८
अनुकूल-परीषह विजयोपदेश १०६-११०
कर्म-विदारक वीरों को उपदेश द्वितीय उद्देशक १११-११३
मद-त्याग उपदेश ११४-११५
समता धर्म-उपदेश ११६-१२०
परिग्रह-त्याग-प्रेरणा
अति-परिचय त्याग-उपदेश १२२-१२८
एकलविहारी मुनिचर्या
अधिकरण विवर्जना १३०-१३२
सामायिक साधक का आचार १३३-१४२
अनुत्तर धर्म और उसकी आराधना . तृतीय उद्देशक ५४३
संयम से अज्ञानोपचित कर्मनाश और मोक्ष १४४-१५०
कामासक्ति त्याग का उपदेश १५१-१५२
आरम्भ एवं पाप में आसक्त प्राणियों की गति एवं मनोदशा १५३-१५४
सम्यग् दर्शन में साधक-बाधक तत्त्व
सुव्रती समत्वदर्शी-गृहस्थ देवलोक में १५६-१५७
मोक्षयात्री भिक्षु का आचरण १५०-१६०
अशरण भावना
बोधिदुर्लभता की चेतावनी १६२-१६३
भिक्षुओं के मोक्ष-साधक गुणों में ऐकमत्य उपसंहार
उपसर्ग परिज्ञा : तृतीय अध्ययन : पृष्ठ १८० से २४६
प्राथमिक-परिचय प्रथम उद्देशक १६५-१६७
प्रतिकूल उपसर्ग:विजय
१४०
१४६
१५५ से १७६
१५५ १५७
१६५ १६६ १६६ १७२ १७६
१७७
१६४
१७८
१८०-१८३ १८३ से १६५