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________________ प्रथम उद्देशक : गाथा ३२५ से ३२६ नरक में नारक क्या खोते क्या पाते ? ३२५. अप्पेण अप्पं इह वंचइत्ता, भवाहमे पुव्व सते सहस्से । चिट्ठति तत्था बहुकूरकम्मा, जहा कडे कम्मे तहा सि भारे ॥ २६ ॥ ३२६. समज्जिणित्ता कलुषं अणज्जा, इट्ठ े हि कंतेहि य विप्पहूणा । ते दुब्भिगंधे कसिणे य फासे, कम्मोवगा कुणिमे आवसंति ।। २७ ।। ફે૨ ३२५. इस मनुष्यभव में स्वयं ही स्वयं की वंचना करके तथा पूर्वकाल में सैकड़ों और हजारों अधम (व्याध आदि नीच) भवों को प्राप्त करके अनेक क्रूरकर्मी जीव उस नरक में रहते हैं । पूर्वजन्म में जिसने जैसा कर्म किया है, उसके अनुसार ही उस नारक को वेदनाएँ (भार) प्राप्त होती हैं । ३२६. अनार्य पुरुष पाप ( कलुष) उपार्जन करके इष्ट और कान्त ( प्रिय ) ( रूपादि विषयों) से रहित ( वंचित ) होकर कर्मों के वश हुए दुर्गन्धयुक्त अशुभ स्पर्श वाले तथा मांस ( रुधिर आदि) से परिपूर्ण कृष्ण (काले रूप वाले) नरक में आयुपूर्ण होने तक निवास करते हैं । - ऐसा मैं कहता हूँ । विवेचन - नरक में नारक क्या खोते, क्या पाते ? - प्रस्तुत सूत्रगाथा द्वय में इस उद्देशक का उपसंहार करके शास्त्रकार ने नरक में नारकीय जीवों के द्वारा खोने-पाने का संक्षेप में वर्णन किया हैं । दोनो सूत्रगाथाओं में पूर्वकृत कर्मों के अनुसार नारकों के लाभ-हानि के निम्नोक्त तथ्य प्रकट किये गये हैं- ( १ ) मनुष्यजन्म में जो लोग जरा-सी सुखप्राप्ति के लिए हिंसादि पापकर्म करके दूसरों को नहीं, अपने आपको ही वंचित करते, (२) वे उसी के फलस्वरूप सैकड़ों हजारों वार शिकारी, कसाई, आदि नीच योनियों में जन्म लेकर तदनन्तर यातना स्थान रूप नरक में निवास करते हैं, (३) जिसने जिस अध्यवसाय से जैसे जघन्य जघन्यतर- जघन्यतम पापकर्म पूर्वजन्मों में किये हैं, तदनुसार ही उसे नरक में वैसी ही वेदनाएँ मिलती हैं। (४) वे अनार्य पुरुष अपने थोड़े-से सुखलाभ के लिए पापकर्मों का उपार्जन करते हैं । (५) उसके फलस्वरूप नरक में इष्ट, कान्त, मनोज्ञ रूप, रस गन्ध स्पर्श आदि विषयों से वंचित रहते हैं, और अनिष्ट रूप, रस, गन्ध स्पर्श आदि प्राप्त करके अपनी पूरी आयु तक नरक में दुःख भोगते रहते हैं । जहा कडं कम्म तहासिमारे इस पंक्ति का आशय यह है कि 'जैसा जिसका कर्म, वैसा ही फल' के सिद्धान्तानुसार नरक में नारकों को पीड़ा भोगनी पड़ती है । उदाहरणार्थ - जो लोग पूर्वजन्म में मांसाहारी थे, उन्हें नरक में उनका अपना ही मांस काटकर आग में पकाकर खिलाया जाता है, जो लोग मांस का रस पीते थे, उन्हें अपना ही मवाद एवं रक्त पिलाया जाता है, अथवा सीसा गर्म करके पिलाया जाता है तथा जो मच्छीमार बहेलिये आदि थे, उन्हें उसी प्रकार से मारा काटा एवं छेदा जाता है - जो असत्यवादी थे, उन्हें उनके पूर्वजन्म के दुष्कृत्यों को याद दिलाकर उनकी जिह्वा काटी जाती है, जो पूर्वजन्म में परद्रव्यापहारक चोर, लुटेरे डाकू आदि थे, उनके अंगोपांग काटे जाते हैं, जो परस्त्रीगामी थे
SR No.003438
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages565
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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