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________________ २८० सूत्रकृतांग - चतुर्थ अध्ययन – स्त्रीपरिक्षा मान लेता है, अर्थात् मेरे वश में हो गया है, इस प्रकार भलीभाँति जान कर अथवा अपने द्वारा उसके लिऐ किये हुए कार्यों को गिना कर, उवलो - स्त्री जब पुरुष की आकृति, चेष्टा इशारे आदि से यह जान लेती है कि यह साधु मेरे वशीभूत हो गया है। 'तो पेसंति तहाभूएहि तब उसके अभिप्राय को जानने के पश्चात नौकर के द्वारा करने योग्य तुच्छ एवं छोटे से छोटे कार्य में नियुक्त करती है अथवा तथाभूत कार्यों का अर्थ यह भी है साधुवेष में रहन वाले पुरुष के योग्य कार्यों में प्रवृत्त करती है । चूर्णिकार सम्मत पाठान्तर है 'ततो णं वेसेति तहारुवहि' अर्थ होता है वशीभूत हो जाने के बाद तथारूप कार्यों के लिए आदेश देती है । पेहाहि = देखना, प्राप्त करना । वग्गूफलाई आहरािित = वल्गु अच्छे-अच्छे नारियल, केला आदि फलों को ले आना । अथवा वग्गफलाई ( पाठान्तर ) का 'वाक्फलानि' संस्कृत में रूपान्तर करके अर्थ हो सकता है धर्मकथारूप या ज्योतिष व्याकरणादि रूप वाणी ( व्याख्यान) से प्राप्त होने वाले वस्त्रादि रूप फलों को ले आइए। 'दारूणि सागपागाए' - सागभाजी पकाने के लिए लकड़ियाँ ( इन्धन), पाठान्तर है अन्नपाकाय = चावल आदि, अन्न पकाने के लिए चूर्णिकार सम्मत पाठान्तर है 'अण्णपायाय' अर्थ उपर्युक्त ही है । पाताणि मे रथावेहि = मेरे पात्रों को रंग दो रंग-रोगन कर दो, अथवा मेरे पैर महावर आदि से रंग दो। कासवगं च मे समजुंजाणाहि सिर मुंडने के लिए काश्यप नाई को आज्ञा दो अथवा नाई से बाल कटाने की अनुज्ञा दो, (ताकि मैं अपने लम्बे केशों को कटवा डालूं ।) 'कोसं च मोयमेहाए' = मोक= पेशाब करने के लिए कोश-भाजन । कुक्कुहयं = चूर्णिकार के अनुसार अर्थ है - तुम्बवीणा; वृत्तिकार के अनुसार अर्थ है - खुनखुना । वेणुपलासियं = बंशी या बांसुरी । गुलियं = औषध गुटिका - सिद्ध गुटिका, जिससे यौवन नष्ट न हो । 'तेल्लं मुहमिलिगजाए = मुख पर अभ्यंगन करने - मलने के लिए ऐसा तेल लाएँ, जो मुख की कान्ति बढाए । वेणुफलाई सन्निधाणाए - बांस के फलक की बनी हुई पेटी लादें मुफणि = . - जिसमें सुखपूर्वक तक्रादि पदार्थ पकाये या गर्म किये जा सकें ऐसा बर्तन - तपेली या बटलोई । घिसु = ग्रीष्म ऋतु में । चंदालगं देवपूजन करने के लिए तांबे का छोटा लोटा, जिसे मथुरा में 'चन्दालक' ( चण्डुल) कहते हैं । करगं कदक करवा पानी रखने का धातु का एक बर्तन अथवा मद्य का भाजन । वच्च्चघर=वर्चोग्रह - पाखाना, शौचालय । चूर्णिकार के अनुसार - 'बच्चघरगं व्हाणिगा' - वर्चोगृह का अर्थ नानिका स्नानघर | खणाहि = बनाओ। सरपावगं = जिस पर रखकर बाण (शर) फेंके जाते हैं, धनुष । गोरहगं = तीन वर्ष का बैल, अथवा बैलों से खींचा जाने वाला छोटा रथ । सामणेराए = श्रामणेर = श्रमण पुत्र के लिए | घडग - मिट्टी की छोटी कुलडीया, घड़िया अथवा छोटी-सी गुड़िया । सडडिमयं = ढोल आदि के सहित बाजा या झुनझुना । चेलगोलं= कपड़े की बनी हुई गोल गेंद कुमारभूताय = राजकुमार के समान अपने कुमार के लिए। 'आवसहं च जाण मत्तं च ' - वर्षाकाल में निवास करने योग्य मकान (आवास) और चावल आदि भोजन का प्रबन्ध कर लो। चूर्णिकार के अनुसार पाठान्तर है - " आवसथं जा भत्ता ।" अर्थात् - हे स्वामी ( पतिदेव ) ! वर्षाकाल सुख बिताने योग्य मकान के प्रबन्ध का ध्यान रखना । “पाउल्लाई संकमट्टाए' = वृत्तिकार के अनुसार - मूंज की बनी हुई या काष्ट की बनी हुई पादुका - खडाऊ, इधर-उधर घूमने के लिए लाओ, चूर्णिकार के अनुसार- क्रठ्ठपाउगाओ = काष्ठ - पादुका । 'झाणप्पा हवंति दासा वा = खरीदे हुए दास की तरह ऐसे पुरुषों पर स्त्रियों द्वारा आज्ञा की जाती है । संठबेति घाती वा = धाय की तरह बच्चे को गोद में रखते हैं । चूर्णिकार के अनुसार पाठान्तर हैं - सण्णवेति धाव इवा = अर्थ होता है - रोते हुए बच्चे को धाय की तरह अनेक प्रकार के मधुर आलापों से समझा-बुझाकर रखते (चुप करते हैं। सुहिरामणा जि ते संता = मन में अत्यन्त लज्जित होते हुए भी वे लज्जा को छोड़कर =
SR No.003438
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages565
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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