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________________ ( २७ ) मुख्य है। सूत्रकृतांग में प्रायः सर्वत्र परमत का खण्डन और स्वमत का मण्डन स्पष्ट प्रतीत होता है। सूत्रकृतांग की तुलना बौद्ध परम्परा मान्य 'अभिधम्म पिटक' से की जा सकती है। जिसमें बुद्ध ने अपने युग में प्रचलित ६२ मतों का यथाप्रसंग खण्डन करके अपने मत की स्थापना की है। सूत्रकृतांग सूत्र में स्व-समय और पर-समय का वर्णन है। वृत्तिकारों के अनुसार इस में ३६३ मतों का खण्डन किया गया है । समवायांग सूत्र में सूत्रकृतांग सूत्र का परिचय देते हुए कहा गया—इसमें स्वसमय, पर-समय, जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध तथा मोक्ष आदि तत्त्वों के विषय में कथन किया गया है। १८० क्रियावादी मतों की, ८४ अक्रियावादी मतों की, ६७ अज्ञानवादी मतों की एवं ३२ विनयवादी मतों की, इस प्रकार सब लाकर ३६३ अन्य यूथिक मतों की परिचर्चा की है। श्रमण सूत्र में सूत्रकृतांग के २३ अध्ययनों का निर्देश है—प्रथम श्रुतस्कन्ध में १६, द्वितीय श्रु तस्कन्ध में ७ । नन्दी सूत्र में कहा गया है कि सूत्रकृतांग में लोक, अलोक, लोकालोक, जीव, अजीव आदि का निरूपण है। तथा क्रियावादी आदि ३६३ पाखण्डियों के मतों का खण्डन किया गया है। दिगम्बर परम्परा के मान्य ग्रन्थ राजवार्तिक के अनुसार सूत्रकृतांग में ज्ञान, विनय, कल्प, अकल्प, व्यवहार, धर्म एवं विभिन्न क्रियाओं का निरूपण है। सूत्रकृतांग सूत्र का संक्षिप्त परिचय : जैन परम्परा द्वारा मान्य अंग सूत्रों में सूत्रकृतांग का द्वितीय स्थान है। किन्तु दार्शनिक-साहित्य के इतिहास की दृष्टि से इसका महत्व आचारांग से अधिक है। भगवान महावीर के युग में प्रचलित मत-मतान्तरों का वर्णन इसमें विस्तृत रूप से हुआ है । सूत्र-कृतांग का वर्तमान समय में जो संस्करण उपलब्ध है, उसमें दो श्रु तस्कन्ध हैं-प्रथम श्रुतस्कन्ध और द्वितीय श्र तस्कन्ध । प्रथम में सोलह अध्ययन हैं और द्वितीय में सात अध्ययन । प्रथम श्रु तस्कन्ध के प्रथम समय अध्ययन के चार उद्देशक हैं-पहले में २७ गाथाएँ हैं, दूसरे में ३२, तीसरे में १६ तथा चौथे में १३ हैं। इसमें वीतराग के अहिंसा-सिद्धान्त को बताते हुए अन्य बहुत से मतों का उल्लेख किया गया है । दूसरे वैतालीय अध्ययन में तीन उद्देशक हैं। पहले में २२ गाथाएँ, दूसरे में ३२ तथा तीसरे में २२। वैतालीय छन्द में रचना होने के कारण इसका नाम वैतालीय है । इसमें मुख्य रूप से वैराग्य का उपदेश है। तीसरे उपसर्ग अध्ययन के चार उद्देशक हैं। पहले में १७ गाथाएँ हैं, दूसरे में २२. तीसरे में २१ तथा चौथे में २२ । इसमें उपसर्ग अर्थात् संयमी जीवन में आने वाली विघ्न बाधाओं का वर्णन है । चौथे स्त्री-परिज्ञा अध्ययन के दो उद्देशक हैं । पहले की ३१ गाथाएँ हैं और दूसरे की २२ । इसमें साधकों के प्रति स्त्रियों द्वारा उपस्थित किये जाने वाले ब्रह्मचर्य घातक विघ्नों का वर्णन है। पांचवे निरयविभक्ति अध्ययन के दो उद्देशक हैं। पहले में २७ गाथाएँ और दूसरे में २५। दोनों में नरक के दुःखों का वर्णन है । छठे वीरस्तुति अध्ययन का कोई उद्देशक नहीं है। इसमें २६ गाथाओं में भगवान् महावीर की स्तुति की गई है। सातवें कुशील-परिभाषित अध्ययन में ३० गाथाएँ हैं, जिसमें कुशील एवं चरित्रहीन व्यक्ति की दशा का वर्णन है । आठवें वीर्य अध्ययन में २६ गाथाएँ हैं, इसमें वीर्य अर्थात् शुभ एवं अशुभ प्रयत्न का स्वरूप बतलाया गया है। नवमें धर्म अध्ययन में ३६ गाथाएं हैं, जिसमें धर्म के स्वरूप का प्रतिपादन किया गया है। दशवें समाधि अध्ययन में २४ गाथाएँ हैं, जिसमें धर्म में समाधि अर्थात् धर्म में स्थिरता का कथन किया गया है । ग्यारहवें मार्ग अध्ययन में ३८ गाथाएँ हैं। जिसमें संसार के बन्धनों से छुटकारा प्राप्त करने का मार्ग बताया गया है। बारहवें समवसरण अध्ययन में २२ गाथाएँ हैं, जिसमें क्रियावादी, अक्रियावादी, विनयवादी और अज्ञानवादी मतों की विचारणा की गई है। तेरहवें याथातथ्य अध्ययन में २३ गाथाएँ हैं, जिसमें मानव-मन के स्वभाव का सुन्दर वर्णन किया गया है। चौदहवें ग्रन्थ अध्ययन में २७ गाथाएँ हैं, जिसमें ज्ञान प्राप्ति के मार्ग का वर्णन किया गया है। पन्द्रहवें आदानीय अध्ययन में २५ गाथाएँ हैं, जिसमें भगवान महावीर के उपदेश का सार दिया गया है। सोलहवाँ गाथा अध्ययन गद्य में है, जिसमें भिक्ष अर्थात् श्रमण का स्वरूप सम्यक् प्रकार से समझाया गया है।
SR No.003438
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages565
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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