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________________ प्रथम उद्देशक । माथा ८९ से १२ किसे पता है ? और फिर बुढ़ापे में जब इन्द्रियां क्षीण हो जायेगी, शरीर जर्जर हो जायेगा धर्माचरण या संयम पालन करने की शक्ति नहीं रह जायेगी। इसलिए शास्त्रकार का तात्पर्य यह है कि संयमयुक्त मानव जीवन पुनः प्राप्त होना दुर्लभ है। 'णो हवणमंति राइओ' इस बोध वाक्य का भी आशय यही है कि बीता हुआ समय या अवसर लौटकर नहीं आता। इसलिए इस जन्म में भी जो क्षण बीत गया है, वह वापस लौटकर नहीं आयेगा, और न यह भरोसा है कि इस क्षण के बाद अगले क्षण तुम्हारा जीवन रहेगा या नहीं ? जीवन के इस परम सत्य को प्रकट करते हुए कहा गया है-"संबुज्मह, कि न बज्झह ?" इसका आशय यही है कि इसी जन्म में और अभी बोध प्राप्त कर लो । जब इतने सब अनुकूल संयोग प्राप्त है तो तुम बोध क्यों नहीं प्राप्त कर लेते ? भगवान् ऋषभदेव का यह वैराग्यप्रद उपदेश समस्त भव्य मानवों के राग-द्वेष-मोह-विदारण करने एवं बोध प्राप्त करने में महान उपयोगी है। केनोपनिषद में भी इसी प्रकार की प्र "यहां जो कुछ (आत्मज्ञान) प्राप्त कर लिया, वही सत्य है, अगर यहां उसे (आत्मादि तत्त्व को) नहीं जाना तो (आगे) महान् विनाश है।' द्रव्य सम्बोध की अपेक्षा भाव सम्बोध दुर्लभतर-द्रव्यनिद्रा से जागना द्रव्य सम्बोध है, और भावनिद्रा (ज्ञान-दर्शन-चारित्र की शुन्यता या प्रमाद) से जागना भाव सम्बोध है, जिसे प्राप्त करने की ओर शास्त्रकार का इंगित है; क्योंकि द्रव्य सम्बोध की अपेक्षा भाव सम्बोध दुर्लभ है। यहाँ नियुक्तिकार ने द्रव्य और भाव से जागरण और शयन को लेकर चतुभंगी सूचित की है-(१) एक साधक द्रव्य से सोता है, भाव से जागता है, (२) दूसरा द्रव्य से जागता है, भाव से सोता है, (३) तीसरा साधक द्रव्य से भी सोता है, भाव से भी, और (४) चौथा साधक द्रव्य और भाव दोंनों से जागता है। यह चतुर्थभंग है और यही सर्वोत्तम है । इसके बाद प्रथम भंग ठीक है । शेष दोनों भंग निकृष्ट है।' मृत्य किसी को, किसी अवस्था में नहीं छोड़ती-वीतराग केवली चरमशरीरी या तीर्थंकर आदि इने-गिने महापुरुषों के सिवाय मृत्यु पर किसी ने भी विजय प्राप्त नहीं की। आयुष्य की डोरी टूटते ही मृत्यु निश्चित है । जैसे-बाज बटेर पर झपटकर उसका जीवन नष्ट कर देता है, वैसे ही मृत्यु आयुष्य क्षय होते ही मनुष्य जीवन पर टूट पड़ती है । इसी आशय से दूसरी गाथा में कहा गया है-डहरा बढाय .........."आउक्खयम्मि तुट्टइ।' मनुष्य जन्म प्राप्त हो जाने पर भी मृत्यु निश्चित है, वह कब आकर गला दबोच देगी, यह निश्चित नहीं है, इसलिए सम्बोध प्राप्त करने तथा धर्माराधना करने में विलम्व नहीं करना चाहिए, यह आशय इस गाथा में गर्भित है। -केनोपनिषद् १ (क) सूत्रकृतोग शीलांकवृत्ति पृ० ५४ के आधार पर (ख) इहचेदवेदीदथ सत्यमस्ति, न चेदवेदीन्महती विनष्टि: २ (क) दव्वं निदायो दंसणणाणतवसंजमा भावे ।। अहिगारी पुण भणिो , णाणे तव-दसण-चरिते ॥ (स) सूत्रकृतांग शीलांकवृत्ति भाषानुवाद भाग १, पृ० १६१ -सूत्रकृतांग नियुक्त गाथा० ४२
SR No.003438
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages565
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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