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________________ सहयोगी-सत्कार एक आदर्श श्रावक : श्रीमान गुमानमल जी सा0 चोरडिया : जीवन-परिचय भगवान महावीर ने श्रावक के आदर्श जीवन की ओर इंगित करके एक वचन कहा है-गिहिवासे वि सुव्वयावे गृहस्थावास में रहते हुए भी व्रतों की सम्यग् आराधना करते हैं। श्रीमान गुमानमल जी सा० चोरडिया-स्थानकवासी जैन समाज में एक आदर्श सद्गृहस्थ के प्रतीक रूप है। प्रकृति से अतिभद्र, सरल, छोटे-बड़े सभी के समक्ष विनम्र, किन्तु स्पष्ट और सत्यवक्ता, अपने नियम व मर्यादाओं के प्रति दृढ़निष्ठा सम्पन्न. गुरुजनों के प्रति विवेकवती आस्था से युक्त, सेवा कार्यों में स्वयं अग्रणी तथा प्रेरणा के दूत रूप में सर्वत्र विश्रुत है। आपने बहुत वर्ष पूर्व श्रावक व्रत धारण किये थे । अन्य अनेक प्रकार की मर्यादाएँ भी की थीं, आज इस वृद्ध अवस्था तथा शारीरिक अस्वस्थता के समय भी आप उन पर पूर्ण दृढ़ है। इच्छा-परिमाण व्रत पर तो आपकी दृढ़ता तथा कार्यविधि सबके लिए ही प्रेरणाप्रद है। अपनी की हुई मर्यादा से अधिक जो भी वार्षिक आमदनी होती है वह सब तुरन्त ही शुभ कार्यों में-जैसे जीवदया, असहाय-सहायता, बुक बैंक, गरीब व रुग्णजन सेवा तथा साहित्य प्रसार में वितरित कर देते हैं । राजस्थान तथा मद्रास में आपकी दानशीलता से अनेक संस्थाएँ लाभान्वित हो रही है। आप स्था० जैन समाज के अग्रगण्य धर्मनिष्ठ श्रेष्ठी श्री मोहनमल जी सा० चोरड़िया के अत्यन्त विश्वास-पात्र, सुदक्ष तथा प्रधान मुनीम रहे । सेठ साहब प्रायः हर एक कार्य में आपकी सलाह लेते हैं । मद्रास में आपका अपना निजी व्यवसाय भी है । प्रायः सभी सामाजिक-धार्मिक कार्यों में आपका सहयोग वांछित रहता है। ___ आपकी जन्म भूमि-नोखा (चान्दावतों का) है, आपके स्व० पिता श्रीमान राजमलजी चोरडिया भी धार्मिक वृत्ति के थे । आपके पाँच सहोदर अनुजभ्राता हैं---श्री मांगीलाल जी, चम्पालाल जी, दीपचन्द जी, चन्दनमल जी तथा फूलचन्द जी । सभी का व्यवसाय मद्रास में चल रहा है। तथा आप एवं सभी बंधु स्वर्गीय पूज्य गुरुदेव स्वामी श्री हजारीलाल म० के प्रति अनन्य श्रद्धा भक्ति रखते हैं। स्वामी श्री ब्रजलाल जी म. सा० एवं युवाचार्य श्री मधुकर मुनि जी म० के प्रति आप सब की गहरी श्रद्धा है। युवाचार्य श्री के निदेशन में चलने वाले विविध धार्मिक एवं सांस्कृतिक उपक्रमों में आप समय-समय पर तन-मन-धन से सहयोग करते रहे हैं; कर रहे हैं। ___ आगमों के प्रति आपकी गहरी निष्ठा है। प्रारम्भ से ही आप आगम-साहित्य के प्रचार-प्रसार हेतु उत्साहवर्धक प्रेरणाएँ देते रहे हैं। जब युवाचार्य श्री के निदेशन में आगमों के हिन्दी अनुवाद एवं विवेचन-प्रकाशित करने की योजना बनी तो, आपश्री ने स्वतः की प्रेरणा से ही एक बड़ी धन राशि देने को उत्साहपूर्ण घोषणा की, साथ ही अन्य मित्रों एवं स्वजन-स्नेहियों को प्रेरणा भी दी। आपकी सहयोगात्मक भावना तथा उदारता हम सबके लिये प्रेरणा प्रदीप का काम कर रही है। प्रस्तुत आगम के प्रकाशन का व्यय-भार आपने वहन किया है। हम शासन देव से प्रार्थना करते हैं कि ऐसे समाजरत्न आदर्श श्रावक चिरकाल तक जिनशासन की सेवा करते हुए हमारा मार्गदर्शन एवं उत्साह संवर्धन करते रहें। श्री चोरड़िया जी ने अपनी स्वर्गीया धर्मपत्नी श्रीमती माशान में प्रकाशित करवाया है। -मंत्री
SR No.003438
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages565
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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