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________________ प्रकाशकीय सूत्रकृतांग सूत्र का प्रथम भाग पाठकों के कर-कमलों में समर्पित करते हुए हमें परम सन्तोष का अनुभव हो रहा है। प्रस्तुत सूत्र के दो श्रु तस्कन्ध हैं। उनमें से यह प्रथम श्रु तस्कन्ध है। दूसरे श्रु तस्कन्ध के मुद्रण का कार्य भी चालू है। वह अजमेर में मुद्रित हो रहा है। आशा है अल्प समय में ही वह भी तैयार हो जाएगा और आपके पास पहुँच सकेगा। इसके पूर्व स्थानांग सूत्र मुद्रित हो चुका है और समवायांग का मुद्रण समाप्ति के निकट है। हमारा संकल्प है, अनुचित शीघ्रता से बचते हुए भी यथासंभव शीघ्र से शीघ्र सम्पूर्ण बत्तीसी पाठकों को सुलभ करा दी जाए। - सूत्रकृतांग का सम्पादन और अनुवाद जैन समाज के प्रख्यात साहित्यकार श्रीयुत श्रीचंद जी सुराणा 'सरस' ने किया है। उनकी ही देखरेख में इसका मुद्रण हुआ है। समग्र देश में और विशेषतः राजस्थान में जो विद्युत-संकट चल रहा है, उसके कारण मुद्रणकार्य में भी व्याघात उत्पन्न हो रहा है, इस संकट के आंशिक प्रतीकार के लिए अजमेर और आगरा-दो स्थानों पर मुद्रण की व्यवस्था करनी पड़ी है। यह सब होते हुए भी जिस वेग के साथ काम हो रहा है, उससे आशा है, हमारे शास्त्र-प्रेमी पाठक और ग्राहक अवश्य ही सन्तुष्ट होंगे। - प्रस्तुत आगम श्रीमान् सेठ गुमानमल जी सा० चोरड़िया की विशिष्ट आर्थिक सहायता से प्रकाशित हो रहा है, अतएव समिति उनके प्रति कृतज्ञता और आभार प्रदर्शित करती है। यों श्री चोरडिया जी का आगम प्रकाशन के इस महान् अनुष्ठान में प्रारम्भ से ही उत्साहपूर्ण सक्रिय सहयोग रहा है। समिति के आप मद्रास क्षेत्रीय कोषाध्यक्ष भी हैं । आपका संक्षिप्त जीवन परिचय अन्यत्र प्रकाशित किया जा रहा है। श्रमणमंघ के युवाचार्य पण्डितप्रवर श्रीमधुकर मुनिजी महाराज के श्री चरणों में कृतज्ञता प्रकाशित करने के लिए किन शब्दों का प्रयोग किया जाय, जिनकी श्रु तप्रीति एवं शासन-प्रभावना की प्रखर भावना की बदौलत ही हमें श्रुत-सेवा का महान् सौभाग्य प्राप्त हुआ है। . साहित्यवाचस्पति विश्रु त विबुध श्री देवेन्द्र मुनिजी म० शास्त्री ने समिति द्वारा पूर्व प्रकाशित आगमों की भाँति प्रस्तुत आगम की भी विस्तृत और विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावना लिखने का दायित्व लिया था, किन्तु स्वास्थ्य की प्रतिकूलता के कारण यह सम्भव नहीं हो सका, तथा हमारे अनुरोध पर पं० रत्न श्री विजय मुनि जी शास्त्री ने विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावना लिखी है, तदर्थ हम विनम्र भाव से मुनिश्री के प्रति आभारी हैं। ___ सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमान् श्रीचंदजी सुराणा ने इस आगम का सम्पादन एवं अनुवाद किया है । पूज्य युवाचार्य श्रीजी ने तथा पं० शोभाचन्द्र जी भारिल्ल ने अनुवाद आदि का अवलोकन किया है । तत्पश्चात् मुद्रणार्थ प्रेस में दिया गया है । तथापि कहीं कोई त्रुटि दृष्टिगोचर हो तो विद्वान् पाठक कृपा कर सूचित करें जिससे अगले संस्करण में संशोधन किया जा सके। हमारी हार्दिक कामना है कि जिस श्रु तभक्ति से प्रेरित होकर आगम प्रकाशन समिति आगमों का प्रकाशन कर रही है उसी भावना से समाज के आगम प्रेमी बन्धु इनके अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार में उत्साह दिखलाएँगे जिससे समिति का लक्ष्य सिद्ध हो सके। ____ अन्त में हम उन सब अर्थसहायकों एवं सहयोगी कार्यकर्ताओं के प्रति धन्यवाद ज्ञापन करना अपना कर्तव्य समझते हैं जिनके मूल्यवान् सहयोग से ही हम अपने कर्तव्य पालन में सफल हो सके हैं। रतनचंद मोदी वम विना किया जतनराज मूथा (कार्यवाहक अध्यक त्री ) (महामंत्री)
SR No.003438
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages565
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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