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________________ ३९८ आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध भगवान की धर्म देशना ७७५. ततो णं १ समणे भगवं महावीरे उप्पन्नणाणदंसणधरे अप्पाणं च लोगं च अभिसक्खि पुव्वं देवाणं धम्ममाइक्खती, ततो पच्छा माणुसाणं । ७७५ . तदनन्तर अनुत्तर ज्ञान-दर्शन के धारक श्रमण भगवान् महावीर ने केवलज्ञान द्वारा अपनी आत्मा और लोक को सम्यक् प्रकार से जानकर पहले देवों को, तत्पश्चात् मनुष्यों को धर्मोपदेश दिया। विवेचन – भगवान् द्वारा धर्माख्यान — प्रस्तुत सूत्र में तीन बातों का विशेषत: उल्लेख किया है— (१-२) केवलज्ञान- केवलदर्शन होने के पश्चात् स्वयं लोक को जानकर भगवान् ने धर्मोपदेश दिया है, (३) पहले देवों और फिर मनुष्यों को धर्म - व्याख्यान दिया । २ अभिसमक्ख- - जानकर, धम्ममाइक्खंती - धर्म का आख्यान - कथन - उपदेश किया । ३ पंचमहाव्रत एवं षड्जीव निकाय की प्ररूपणा ७७६. ततो णं समणे भगवं महावीरे उप्पन्नणाणदंसणधरे गोतमादीणं समणाणं णिग्गंथाणं पंच महव्वयाई ४ सभावणाई छज्जीवणिकायाई आइक्खति भासति परूवेति, तंजहा — पुढवीकाए जाव तसकाए । ७७६. तत्पश्चात् केवलज्ञान- केवलदर्शन के धारक श्रमण भगवान् महावीर ने गौतम आदि श्रमण-निर्ग्रन्थों को (लक्ष्य करके ) भावना सहित पंच महाव्रतों और पृथ्वीकाय से लेकर त्रसकाय तक –षड्जीवनिकायों के स्वरूप का व्याख्यान किया। सामान्य- विशेष रूप से प्ररूपण किया। विवचेन - भावना सहित पंचमहाव्रत एवं षड्जीवनिकाय का उपदेश - प्रस्तुत सूत्र में तीन बातों का मुख्यतया उल्लेख किया गया है– (१) भ० महावीर द्वारा किसको लक्ष्य करके उपदेश दिया गया ? अर्थात् श्रोता कौन थे? (२) उनके धर्माख्यान के विषय क्या-क्या थे? (३) उपदेश की शैली तथा क्रम क्या था ? १. 'ततो पच्छा माणुसाणं' के बदले पाठान्तर है तो पच्छा मणुसाणं । २. आचा. मू. पा. टि. पृ. २७८ ३. आचा. चूर्णि मू. पा. टि. पृष्ठ २७८ ४. महव्वयाई सभावणाई छज्जीवणिकायाइं के बदले पाठान्तर है— महव्वयाई छज्जीवणिकायाई सभावणाई । ४. (क) आचारांग मूलपाठ सटिप्पण पृ. २७८ (ख) तुलना कीजिए—'तएणं से भवणं तेण अणुत्तरेणं केवलवरणाणेणं दंसणेणं सदेवमणुआसुरलोगं अभिसमिच्चा समणाणं णिग्गंथाणं पंचमहव्वयाई सभावणाई छज्जीवनिकाए धम्मं देसेमाणे विहरिस्सइ । ' स्थानांग सूत्र स्था. ९
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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