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पन्द्रहवां अध्ययन : प्राथमिक
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अहिंसादि पांच महाव्रत, पांच समिति, तीन गुप्ति, दशविध श्रमणधर्म, आचार, नियमोपनियम आदि की भावना करना चारित्रभावना है। "मैं किस निविगई आदि तप के आचरण से अपने दिवस को सफल बनाऊँ, कौन-सा तप करने में मैं समर्थ हूँ?" तथा तप के लिए द्रव्य क्षेत्रादि का विचार करना तपोभावना है। सांसारिक सुख के प्रति विरक्तिरूप भावना वैराग्यभावना है। कर्मबन्धजनक मद्यादि अष्टविध प्रमाद का आचरण न करना अप्रमादभावना है। एकाग्रभावना—एकमात्र आत्म-स्वभाव में ही लीन होना। इसी तरह अनित्यादि १२ भावनाएँ भी हैं। यों अनेक भावनाओं का अभ्यास करना 'भावना' के अन्तर्गत है। भावना अध्ययन के पूर्वार्द्ध में दर्शनभावना के सन्दर्भ में आचार-प्रवचनकर्ता आसन्नोपकारी भगवान् महावीर का जीवन निरूपित है। उत्तरार्द्ध में चारित्रभावना के सन्दर्भ में पांच महाव्रत एवं उनके परिपालन-परिशोधनार्थ २५ भावनाओं का वर्णन है।'
१. (क) आचारांग नियुक्ति गा० ३२७ से ३४१ तक
(ख) आचा० वृत्ति पत्रांक ४१८-४१९