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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
विवेचन - मनोरंजन स्थलों में शब्दश्रवणोत्कण्ठा वर्जित - सूत्र ६८० से ६८६ तक सप्तसूत्री में प्राय: मनोरंजन स्थलों में होने वाले शब्दों के उत्सुकतापूर्वक श्रवण का निषेध किया गया है। संक्षेप में इन सातों में सभी मुख्य-मुख्य मनोरंजन एवं कुतूहलवर्द्धक स्थलों में विविध कर्णप्रिय स्वरों के श्रवण की उत्कण्ठा से साधु को दूर रहने की आज्ञा दी है—(१)भैंसों, सांडों आदि के लड़ने के स्थानों में, (२) वर-वधू युगलमिलन स्थलों या अश्वादि युगल स्थानों में, (३) घुड़दौड़, कुश्ती आदि के स्थानों में तथा नृत्य-गीत-वाद्य आदि की महफिल वाले स्थानों में, (४) कलह, शत्र-सैन्य के साथ युद्ध संघर्ष विलम्ब आदि विरोधी वातावरण के शब्दों का. (५) किसी की शोभायात्रा में किये जाने वाले जय-जयकार या धिक्कार सूचक नारे या हर्ष-शोक सूचक शब्दों का, (६) महान् आस्रव स्थलों में, (७) बड़े-बड़े महोत्सवों में होने वाले शब्द।
इन्हीं पाठों से मिलते-जुलते पाठ - इन सातों सूत्रों में प्रायः मिलते-जुलते स्वरों की श्रवणोत्सुकता का निषेध स्पष्ट है; निशीथ (चूर्णि सहित) उद्देशक बारहवें में कई सूत्र और कई पद अविकल रूप से मिलते हैं,२ कुछ सूत्रों में अधिक पाठ भी है।
जूहियट्ठाणाणि आदि पदों के अर्थ - आचारांगवृत्ति, चूर्णि आदि में तथा निशीथ सूत्र चूर्णि आदि में प्रतिपादित अर्थ इस प्रकार हैं-जूहियट्ठाणाणि-जहाँ वर और वधू आदि जोड़ों के मिलन या पाणिग्रहण का जो स्थान (वेदिका, विवाहमण्डप आदि) हैं, वे स्थान । अक्खाइयट्ठाणाणि - कथा कहने के स्थान, या कथक द्वारा पुस्तक वाचन। माणुम्मणियट्ठाणाणि - मान-प्रस्थ आदि का उन्मान-नाराच (गज) आदि के स्थान अथवा मानोन्मान का अर्थ है - घोड़े आदि के वेग इत्यादि की परीक्षा करना। अथवा एक के बल का माप दूसरे के बल से अनुमानित किया जाए, अथवा माप का अर्थ वस्त्र मानोन्मानित है उनके स्थान। 'निवुज्झमाणि'- अश्व आदि ले जाती हुई। महयाहत - जोर-जोर से बाजे को पीटना, अथवा महा कथानक। वाइता-तंत्री। ताल-करतल ध्वनि। महासवाई-जो भारी आस्रवों-पाप कर्मों के आगमन के स्थान हों। बहुमिलक्खूणि-जिस उत्सव में बहुत-से अव्यक्तभाषी मिलते हैं, वह बहुम्लेच्छ उत्सव। अथवा जो आभाषक है, उन्हें पूछता नहीं है, वह । महुस्सवाइं- महोत्सव। 'मोहंताणि'मोहोत्पत्ति करने वाली क्रिया, मोहना–मैथुनसेवन, बिछड्डयमाणाणि-अलग करते हुए, त्याग करते हुए। ३ १. आचारांग वृत्ति पत्रांक ४१२
तुलना करिये -'जे भिक्खू उज्जूहियाठाणाणि वा णिजूहियाठाणाणि वा मिहोजूहियाठाणाणि वा, हयजूहियाठाणाणि वा गजयूहियाठाणाणि वा।' -निशीथ उ०-१२ ... एगपुरिसंवा बझं णिजमाणं। 'जे भिक्खू आघायाणि वा माणुम्माणियं णम्माणि वा वुग्गहाणि वा ... डिंबाणि वा डमराणि वा खाराणि वा, वेराणि वा महाजुद्धाणि वा महासंगामाणि, कलहाणि वा। अभिसेमट्ठाणाणि वा अक्खाइयाट्ठाणाणि वा माणुम्माणियाट्ठाणाणि वा महयाहयणट्टगीयवादिमतीतलतालतुडिय घण-मुइंगपडुप्पवाइयट्ठाणाणि वा। जे भिक्खू विरूवरूवाणि महामहाणि .... गच्छति । जे भिक्खू विरूवरूवेसु महुस्सवेसु परिभुंजंति।
-निशीथ उ०-१२ चूर्णि पृ० ३४८-३५०३. ३. आचारांग वृत्ति पत्रांक ४१२ (ख) आचारांग चूर्णि टि० पृ० २४५, २४६, २४७, निशीथचूर्णि पृ० ३४८-५०