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________________ ૨૮૮ आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध बीओ उद्देसओ द्वितीय उद्देशक आम्रवन आदि में अवग्रह विधि-निषेध ६२१. से आगंतारेसु वा १ ४ अणुवीई उग्गहं जाएजा।जे तत्थ ईसरे जे समाधिट्ठाए ते उग्गहं अणुण्णवित्ता (ज्जा)-कामं खलु आउसो ! अहालंदं अहापरिण्णातं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स उग्गहे , जाव साहम्मिया, एताव उग्गहं ओगिहिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो। ६२२. से किं पुण' तत्थ उग्गहंसि एवोग्गहियंसि? जे तत्थ समणाण व माहणाण वा दंडए वा छत्तए वा जाव चम्मछेदणए ३ वा तं णो अंतोहिंतो बाहिं णीणेजा, बहियाओ वा णो अंता पवेसेज्जा, सुत्तं वाण पडिबोहेजा,णो तेसिं किंचि विअप्पत्तियं पडिणीयं करेजा। ६२३. से भिक्खू वा २ अभिकंखेज्जा अंबवणं उवागच्छित्तए। जे तत्थ ईसरे जे तत्थ समाहिट्ठाए५ ते उग्गहं अणुजाणावेजा-कामं खलु जावविहरिस्सामो। से किं पुण तत्थ उग्गहंसि एवोग्गहियंसि? अह भिक्खू इच्छेज्जा अंबं भोत्तए वा [पायए वा] से जं पुण अंबं जाणेजा सअंडं जाव संताणगं तहप्पगारं अंबं अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा। ६२४.से भिक्खू वा २ से जं पुण अंबं जाणेज्जा अप्पंडं जावसंतागणं अतिरिच्छछिण्णं अव्वोच्छिण्णं अफासुयं जाव णो पडिगाहेजा। ६२५. से भिक्खूवा २ से जं पुण अंबं जाणेज्जा अप्पंडं जाव संताणगं तिरिच्छछिण्णं १. 'आगंतारेसु वा ' के आगे '४' का अंक शेष तीनों पदों - आरामागारेसु वा गाहावइकुलेसु वा , परियावसहेसु वा' का सूचक है।' २. 'से किं पुण' बदले पाठान्तर है-'से यं पुण सेयं पडिणीयं करेजा।' वह साधु जिस अवग्रह की.... वह साधु प्रतिकूल व्यवहार करेगा तो उस अवग्रह (स्थान) की अनुज्ञा ग्रहण करने से क्या मतलब? ३. यहाँ 'जाव' शब्द सू. ४४४ के अनुसार 'छत्तए वा ' से 'चम्मछेदणाए' पाठ तक का सूचक है। ४. 'अप्पत्तियं पडिणीयं' के बदले पाठान्तर हैं- 'अपत्तिय पडिणीयं''अपत्तियं पडनीयं 'अर्थ दोनों का वृत्तिकार के अनुसार इस प्रकार है – अप्पतियंति मनसः पीडाम् तथा 'पडिणीयं- प्रयत्नीकतां प्रतिकूलतां न विदध्यात् । अर्थात् - अप्पत्तियं का अर्थ है-मन को पीड़ा न दे, पडिणीयं अर्थात् प्रयत्नीकता, प्रतिकूलता धारण न करे। ५. समाहिट्ठाए के बदले पाठान्तर है-समहिट्टिए-समधिष्ठित है। ६. यहाँ 'जाव' शब्द से सूत्र ६०८ के अनुसार कामं खलु से विहरिसामो तक का सारा पाठ समझें। ७. यहाँ 'जाव' शब्द से अफासुयं से णो पडिगाहेजा तक का पाठ सूत्र ३२५ के अनुसार समझें।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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