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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
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द्रव्यपिण्ड भी आहार (४ प्रकार का), शय्या और उपधि के भेद से तीन प्रकार का है, लेकिन यहाँ केवल आहारपिण्ड ही विवक्षित है। १ पिण्ड का अर्थ भोजन भी है। २ आहार रूप द्रव्यपिण्ड के सम्बन्ध में विविध एषणाओं की अपेक्षा से विचार करना 'पिण्डैषणा' अध्ययन का विषय है। आहार-शुद्धि के लिए की जाने वाली गवेषणैषणा (शुद्धाशुद्धि-विवेक), ग्रहणैषणा (ग्रहण विधि का विवेक) और ग्रासैषणा (परिभोगैषणा – भोजनविधि का विवेक )पिण्डैषणा कहलाती है। इसमें आहारशुद्धि (पिण्ड) से सम्बन्धित उद्गम, उत्पादना, एषणा, संयोजना, प्रमाण, अंगार, धूम और कारण; यों आठ प्रकार की पिण्डविशुद्धि (एषणा) का वर्णन है। ३ पिण्डैषणा अध्ययन के ११ उद्देशक हैं, जिनमें विभिन्न पहलुओं से विभिन्न प्रकार के आहारों (पिण्ड) की शुद्धि के लिए एषणा के विभिन्न अपेक्षाओं से बताये गए नियमों का वर्णन है। ये सभी नियम साधु के लिए बताई हुयी एषणासमिति के अन्तर्गत हैं। दशवैकालिक सूत्र (५) तथा पिण्डनियुक्ति आदि ग्रन्थों में भी इसी प्रकार का वर्णन है।
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१. पिण्डनियुक्ति गा०६, अनुवाद पृ० २. २. (क) पिण्ड समयभाषया भक्तं - स्थान० स्था०७ (अभि० रा०५, पृ० ९३०)
(ख) नालन्दा विशाल शब्द सागर; पृष्ठ ८३८ ३. (क) पिण्डनियुक्ति अनुवाद पृष्ठ २, ३
(ख) आचा० टीका पत्रांक ३२०