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________________ पंचम अध्ययन : प्रथम उद्देशक : सूत्र ५७२-५७४ २५१ थोड़े समय के उपयोग के लिए दिया गया हो। अधारणिजं - जो अप्रशस्त हो, खंजन आदि के चिह्न (धब्बे) जिस पर अंकित हों, अतः जो वस्त्र लक्षणहीन हो। रोइजं तं ण रुच्चति - - इस प्रकार चारों विशेषताओं से युक्त प्रशस्त वस्त्र रुचिकर एवं देय होने पर भी दाता की रुचि न हो, अथवा साधु को लेना पसन्द या कल्पनीय न हो तो वैसा वस्त्र भी अग्राह्य है। वस्त्र-प्रक्षालन निषेध ५७२. से भिक्खू वा २ ‘णो णवए मे वत्थे' त्ति कट्ट णो बहुदेसिएण सिणाणेण वारे जाव पधंसेज वा। ५७३. से भिक्खू वा ‘णो णवए मे वत्थे' त्ति कट्ट णो बहुदेसिएण सीओदगवियडेण वा उसीणोदगवियडेण वारे जाव पधोएज वा। ५७४ से भिक्खू वा २ 'दुब्भिगंधे मे वत्थे' त्ति कट्ट णोबहुदेसिएण सिणाणेण वा तहेव सीतोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा आलावओ। ५७२.: मेरा वस्त्र नया नहीं है।' ऐसा सोच कर साधु या साध्वी उसे [पुराने वस्त्र को ] थोड़े व बहुत सुगन्धित द्रव्य से यावत् पद्मराग से आघर्षित-प्रघर्षित न करे। ५७३. 'मेरा वस्त्र नूतन नहीं है,' इस अभिप्राय से साधु या साध्वी उस मलिन वस्त्र को बहुत बार थोड़े-बहुत शीतल या उष्ण प्रासुक जल से एक बार या बार-बार प्रक्षालन न करे। ५७४. 'मेरा वस्त्र दुर्गन्धित है', यों सोचकर उसे [विभूषा की दृष्टि से] बहुत बार थोड़ेबहुत सुगन्धित द्रव्य आदि से आघर्षित-प्रघर्षित न करे, न ही शीतल या उष्ण प्रासुक जल से उसे एक बार या बार-बार धोए। यह आलापक भी पूर्ववत् है। .विवेचन-वस्त्र को सुन्दर बनाने का प्रयत्न : निषिद्ध - प्रस्तुत तीन सूत्रों में सुन्दर एवं शोभनीय दिखाने की दृष्टि से वस्त्र को सुगन्धित द्रव्यों से सुवासित करने तथा शीतल या उष्ण १. (क) आचारांग वृत्ति पत्रांक ३९६ । (ख) आचारांग चूर्ण मू. पा. टिप्पण पृ. २०७ में अणलं- अपज्जतगं, अथिरं-दुब्बलगं, अधुवं-पाडिहारियं, अधारणिजं- अलक्खणं, एतं चेव न रुच्चति। (ग) निशीथ भाष्य गा. ४६२६ में देखें - 'अणलं अपज्जत्तं खलु, अथिरं अदढं तु होति णायव्वं । अधुवं तु पाडिहारियमलक्खणमधारणिजं तु।। २. यहाँ 'जाव' शब्द से 'सिणाणेण वा' से 'पघंसेजज वा' तक का पाठ सू. ४२१ के अनुसार समझें। ३. यहाँ 'जाव' शब्द से 'उसिणोदगवियडेण वा' से 'पधोएज वा' तक का पाठ सू. ४२१ के अनुसार समझें।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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