SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचम अध्ययन : प्रथम उद्देशक: सूत्र ५६१-५६७ (४) जो वस्त्र अब काम का नहीं रहा, फेंकने योग्य है, उसी वस्त्र को ग्रहण करूँगा । जो साधु जिस प्रकार की प्रतिज्ञा करता है, वह अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार वस्त्र मिले, ग्रहण करता है, अन्यथा नहीं । तो परन्तु पिण्डैषणा अध्ययन में उक्त प्रतिज्ञापालन से प्रादुर्भूत अहंकार के विसर्जन की बात यहाँ भी शास्त्रकार ने सूत्र ५६० के द्वारा अभिव्यक्त की है । वस्त्रैषणा - प्रतिमापालक साधु स्वयं को उत्कृष्ट और दूसरे साधुओं को निकृष्ट न माने । वह सभी प्रकार के प्रतिमापालक साधुओं को जिनाज्ञानुवर्ती तथा समान माने । समाधिभाव में रहे । १ अनैषणीय वस्त्र - ग्रहण - निषेध . २ ५६१. सिया णं एताए एसणाए एसमाणं परो वदेज्जा आउसंतो समणा ! एजाहि तुमं मासेण वा दसरातेण वा पंचरातेण वा सुते ' वा सुततरे वा, तो ते वयं आउसो ! अण्णतरं वत्थं दासामी । एतप्पारं णिग्घोसं सोच्चा निसम्म से पुव्वामेव आलोएजा आउसो ! ति भगिणी! ति वा, णो खलु से कप्पति एतप्पगारे संगारे ३ पडिसुणेत्तए, अभिकख दाउं इदाणिमेव दलयाहिं । वा, ५६४. सिया णं परो णेत्ता वदेज्जा वत्थं सिणाणेण वा जाव आघंसित्ता वा ५६२. से णेवं वदंतं परो वदेज्जा आउसंतो समणा ! अणुगच्छाहि ४, तो ते वयं अण्णतरं वत्थं दासामो । से पुव्वामेव आलोएज्जा- आउसो ! ति वा, भइणी ! ति वा, णो खलु मे कप्पति एयप्पगारे संगारवयणे पडिसुणेत्तए, अभिकंखसि मे दाउं इयाणिमेव दलयाहि । ५६३. से सेवं वदंतं परो णेत्ता वदेज्जा आउसो ! ति वा, भगिणी ! ति वा, आहरेतं वत्थं समणस्स दासामो ' अवियाइं वयं पच्छा वि अप्पणो सयट्ठाए पाणाई भूताइं जीवाई सत्ताई समारंभ समुद्दिस्स जाव चेतेस्सामो। एतप्पगारं निग्घोसं सोच्चा निसम्म तहप्पगारं वत्थं अफासुयं जाव णो पडिगाहेजा । ५. ने भावार्थ दिया है। - 11 - - — २४५ — १. (क) आचारांग वृत्ति पत्रांक ३९५ के आधार पर (ख) आचा० चूर्णि मूलपाठ टिप्पण पृ० २०४ २. 'सुते वा सुततरे वा' के बदले 'सुत्तेण वा सुत्ततरे वा 'सुए वा सुततराए वा', 'सुतेण वा सुतततेण 'वा' आदि पाठान्तर हैं। ३. 'संगारे' के बदले 'संगारवयणे' पाठ है। ४. 'अणुगच्छाहि' के बदले पाठान्तर है. - 'अहुणा गच्छाहि' । अर्थात् - 'इस समय तो जाओ' वृत्तिकार 'अनुगच्छ तावत् पुनः स्तोकवेलायां समागताय दास्यामि।' अभी तो जाओ। फिर थोड़ी देर में लौटने पर दूँगी / दूँगा । 'दासामो' के बदले 'चेयामो' एवं 'दाहामो' पाठान्तर हैं । अर्थ समान है। आउसो ! ति वा, भइणी ! ति वा, आहर एवं पघंसित्ता वा समणस्स णं दासामो। एतप्पगारं
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy