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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध क्रीत, आधाकर्म, औद्देशिक, स्थापना, अनिसृष्ट आदि दोषों के विषय में कहा है। १ इन दोषों से युक्त वस्त्र ग्रहण का निषेध है। बहुमूल्य-बहुआरंभ-निष्पन्न वस्त्र-निषेध
५५७. से भिक्खू वा २ से ज्जाइं पुण वत्थाई जाणेजा विरूवरूवाइं महद्धणमोल्लाई, तंजहा-आईणगाणि वा सहिणाणि वा सहिणकल्लाणाणि वा आयाणि वा कायाणि वा खोमियाणि वा दुगल्लाणि वा पट्टाणि वा मलयाणि वा पत्तुण्णाणि वा अंसुयाणि वा चीणंसुयाणि वा देसरागाणि वा अमिलाणि वा गज्जलाणि वा फालियाणि वा कोयवाणि वा कंबलगाणि वा पावाराणि वा, अण्णतराणि वा तहप्पगाराइं वत्थाई महद्धणमोल्लाइं लाभे संते णो पडिगाहेजा।
५५८. से भिक्खू वा २ से जं पुण आईणपाउरणाणि वत्थाणि जाणेज्जा, तंजहाउद्दाणि वा पेसाणि वा पेसलेसाणि वा किण्हमिगाईणगाणि वा णीलमिगाईणगाणि वा गोरमिगाइणगाणि वा कणगणि वा कणगकंताणिवा कणगपट्टाणि वाकणगखइयाणि ५ वा कणगफुसियाणि वा वग्याणि वा विवग्याणि वा आभरणाणि वा आभरणविचित्ताणि वा अण्णतराणि वा तहप्पगाराइं आईणपाउरणाणि वत्थाणि लाभे संते णो पडिगाहेजा।
५५७. संयमशील साधु-साध्वी यदि ऐसे नाना प्रकार के वस्त्रों को जाने, जो कि महाधन से प्राप्त होने वाले (बहुमूल्य) वस्त्र हैं, जैसे कि - आजिनक (चूहे आदि के चर्म से बने हुए) श्लक्ष्ण- (सहिण) वर्ण और छवि आदि के कारण बहुत सूक्ष्म या मुलायम, श्लक्ष्ण कल्याण . - सूक्ष्म और मंगलमय चिह्नों से अंकित, आजक -किसी देश की सूक्ष्म रोएँ वाली बकरी के १. जैनसिद्धान्त बोल संग्रह भाग ५, बोल ८६५ पृ० १६१-१६२ २. 'क्षौमिक' का अर्थ वृत्तिकार ने सामान्य कपास से बना हुआ वस्त्र किया है, लेकिन यहाँ महँगे वस्त्रों की
सूची में उसे दिया है, इसका रहस्य यह है कि जो सूती वस्त्र हो, लेकिन बहुत ही बारीक हो, उस पर सोनेचाँदी आदि के किनारी-गोटे लगे हुए हों तो वह बहुमूल्य हो जाएगा। निशीथचूर्णि उ०७ में तो उसका अर्थ ही दूसरा किया है-'पोंडमया खोम्मा, अण्णे भण्णंति रुक्खेहितो निग्गोच्छंति, जहा वेडहिंतो पादगा सहा।'
-पुष्पों के रेशे से बना या वृक्षों से निकलने वाले रस से बना हुआ वस्त्र। ३. 'कणगकंताणि' के बदले पाठान्तर है-कणगंताणि। अर्थ है-जिसकी किनारी सुनहरी है, सोने की
४. 'कणगपट्टाणि' के बदले पाठान्तर है -कणगपट्टाणि। अर्थ है - जिसके पृष्ठभाग सोने के हैं। ५. 'कणगखचितं' का अर्थ निशीथचूर्णि में किया गया है - कणगसुत्तेण जस्स फुल्लिया पाडिता तं
'कणगखचितं'–सोने के सूत्र (धागे) से जिस पर फूल अंकित किये हैं, वह है, कनक-खचित । 'आभरणा आभरणविचित्ता' इन दोनों का अर्थ निशीथचूर्णि में यों दिया है- 'एकाभरणेन मंडिता आभरणा। छपत्रिक-चंदलेहिक-स्वस्तिक-घंटिक-मोत्तिकमादीहिं मंडिता आभरणविचित्ता'।- अर्थात् - एक आभूषण से मंडितवस्त्र आभरणवस्त्र, और छपत्रिक (पत्र, चन्द्रलेखा, स्वास्तिक घंटिका आदि नमूनों से निष्पन्न) वस्त्र को आभरणविचित्र कहते हैं।