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________________ तृतीय अध्ययन : तृतीय उद्देशक : सूत्र ५०९-५१४ २०३ कंदाणि वा मूलाणि वा तयाणि वा पत्ताणि वा पुष्पाणि वा फलाणि वा बीयाणि वा हरिताणि वा उदगं वा संणिहियं अगणिं वा संणिक्खित्तं, से आइक्खह २ जाव दूइजेजा। ५१२. से भिक्खू वा गामाणुगामं दूइज्जेजा, अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा, ते णं पाडिपहिया एवं वदेजा-आउसंतो समणा! अवियाइं एत्तो पडिपहे पासह जवसाणि वा ३ जाव सेणं वा विरूवरूवं संणिविटुं, से आइक्खह जाव दूइजेजा। __५१३. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइजमाणे अंतरा से पाडिपहिया जाव आउसंतो समणा ! केवतिय एत्तो गामे वा जाव रायहाणिं (णी) वा? - से आइक्खह जाव दूइज्जेजा। ___५१४. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, अंतरा से पाडिपहिया जाव आउसंतो समणा ! केवइए एत्तो गामस्स वा नगरस्स वा जाव रायहाणीए वा मग्गे? से आइक्खह तहेव जाव दूइज्जेज्जा। ५१०. संयमशील साधु या साध्वी को ग्रामानुग्राम विहार करते हुए रास्ते में सामने से कुछ पथिक निकट आ जाएँ और वे यों पूछे - आयुष्मन् श्रमण! क्या आपने इस मार्ग में किसी मनुष्य को, मृग को, भैंसे को, पशु या पक्षी को, सर्प को या किसी जलचर जन्तु को जाते हुए देखा है? यदि देखा हो तो हमें बतलाओ कि वे किस ओर गये हैं, हमें दिखाओ।" ऐसा कहने पर साधु न तो उन्हें कुछ बतलाए, न मार्गदर्शन करे, न ही उनकी बात को स्वीकार करे, बल्कि कोई उत्तर न देकर उदासीनतापूर्वक मौन रहे। अथवा जानता हुआ भी (उपेक्षा भाव से) मैं नहीं जानता, ऐसा कहे। ४ फिर यतनापूर्वक ग्रामनुग्राम विहार करे। ५११. ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु को मार्ग में सामने से कुछ पथिक निकट आ जाएँ और वे साधु से यों पूछे -- "आयुष्मन् श्रमण ! क्या आपने इस मार्ग में जल में पैदा होने वाले कन्द, या मूल, अथवा छाल, पत्ते, फूल, फल, बीज, हरित अथवा संग्रह किया हुआ पेयजल या निकटवर्ती जल का स्थान, अथवा एक जगह रखी हुई अग्नि देखी है? अगर देखी हो तो हमें बताओ, दिखाओ, कहाँ है?" ऐसा कहने पर साधु न तो उन्हें कुछ बताए, [न दिखाए, और न ही वह उनकी बात स्वीकार करे, अपितु मौन रहे। अथवा जानता हुआ भी (उपेक्षा भाव से) नहीं जानता, ऐसा कहे।] तत्पश्चात् यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करे। ५१२. ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु-साध्वी को मार्ग में सामने से आते हुए पथिक १. तया, पत्ता, पुप्फा, फला, बीया, हरिया—ये पाठान्तर भी हैं। २. 'जाव' शब्द से यहाँ 'आइक्खह' से लेकर 'दूइज्जेज्जा' तक का सारा पाठ सूत्र ५१० के अनुसार समझें। जाव शब्द से यहाँ 'जवसाणि वा' से लेकर 'सेणं वा' तक का सारा पाठ सूत्र ५०० के अनुसार समझें। ४. वैकल्पिक अर्थ - जानता हुआ भी 'जानता हूँ' ऐसा न कहे।
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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