________________
तृतीय अध्ययन : तृतीय उद्देशक : सूत्र ५०६-५०९
२०१ आयरिय-उवज्झायस्स हत्थेण हत्थं जाव अणासायमाणे ततो संजयामेव आयरिय-उवज्झाएहिं सद्धिं जाव दूइज्जेज्जा।
५०७. से भिक्खू वा २ आयरिय-उवज्झाएहिं सद्धिं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा, ते णं पाडिपहिया एवं वदेज्जा-आउसंतो समणा! के तुब्भे, कओ वा एह, कहिं वा गच्छिहिह?
जे तत्थ आयरिए वा उवज्झाए वा से भासेज वा वियागरेज वा आयरिय-उवज्झायस्स भासमाणस्स वा वियागरेमाणस्स वा णो अंतरा भासं करेजा, ततो संजयामेव आहारातिणियाए ३ दूइज्जेजा।
५०८. से भिक्खूवा २ आहारातिणियं गामाणुगामं दूइजमाणे णो राइणियस्स हत्थेण हत्थं जाव अणासायमाणे ततो संजयामेव आहाराइणियं गामाणुगामं दूइज्जेजा।
५०९. से भिक्खूवा २ आहाराइणियं[गामाणुगामं] दूइजमाणे अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेजा, ते णं पाडिपहिया एवं वदेजा-आउसंतो समणा! के तुब्भे?
जे तत्थ सव्वरातिणिए से भासेज वा वियागरेज वा, रातिणियस्स भासमाणस्स वा वियागरेमाणस्स वा णो अंतरा भासं भासेज्जा। ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइजेजा।
५०६. आचार्य और उपाध्याय के साथ ग्रामानुग्राम विहार करने वाले साधु अपने हाथ से उनके हाथ का, पैर से उनके पैर का तथा अपने शरीर से उनके शरीर का (अविनय अविवेकपूर्ण रीति से) स्पर्श न करे। उनकी आशातना न करता हुआ साधु ईर्यासमिति पूर्वक उनके साथ ग्रामानुग्राम विहार करे।
___ ५०७. आचार्य और उपाध्याय के साथ ग्रामानुग्राम विहार करने वाले साधु को मार्ग में यदि सामने से आते हुए कुछ यात्री मिलें, और वे पूछे कि- "आयुष्मन् श्रमण! आप कौन हैं? कहाँ से आए हैं? कहाँ जाएँगे?"
(इस प्रश्न पर) जो आचार्य या उपाध्याय साथ में हैं, वे उन्हें सामान्य या विशेष रूप से उत्तर देंगे। आचार्य या उपाध्याय सामान्य या विशेष रूप से उनके प्रश्नों का उत्तर दे रहे हों, तब वह साधु बीच में न बोले। किन्तु मौन रह कर ईर्यासमिति का ध्यान रखता हुआ रत्नाधिक क्रम से उनके साथ ग्रामानुग्राम विचरण करे।
५०८. रत्नाधिक (अपने से दीक्षा में बड़े) साधु के साथ ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ मुनि अपने हाथ से रत्नाधिक साधु के हाथ को, अपने पैर से उनके पैर को तथा अपने शरीर से उनके शरीर का (अविधिपूर्वक) स्पर्श न करे। उनकी आशातना न करता हुआ साधु ईर्यासमिति पूर्वक उनके साथ ग्रामानुग्राम विहार करे। १. यहाँ जाव शब्द 'हत्थं' से लेकर 'अणासायमाणे' तक के पाठ का सूचक है सूत्र ४८७ के अनुसार। २. यहाँ जाव शब्द से 'सद्धिं से लेकर 'दूइज्जेज्जा' तक का पाठ सू० ५०५ के अनुसार समझें। ३. आहारातिणियाए के स्थान पर पाठान्तर है आहाराइणिए, अहारायणिए, अहारायइणियाए, आधाराईणियाए आदि।