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द्वितीय अध्ययन : द्वितीय उद्देशक: सूत्र ४२६-४२७
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'विसूइया' आदि पदों के अर्थ - विसूइया — विसूचिका — हैजा, छड्डी — वमनरोग, उब्बाहेज्जा- पीड़ित करें, कक्वेण चन्दनादि के उबटन द्रव्य से । वृत्तिकार के अनुसारकाषायरंग के द्रव्य के काढ़े से, वण्णेण –— कम्पिल्लक आदि द्रव्यों से बने हुए लेप से । उच्चावचं मणंनियच्छेज्जा— मन ऊंचा - नीचा करेगा, उच्च मन— ऐसा न करें, अवच मन— ऐसा करें । चूर्णिकार के मत से अनेक प्रकार का मन । सअट्ठाए— अपने प्रयोजन से, गुणे - करधनी, कडगाणि - कड़े, तुडियाणि - बाजूबन्द, पालंबाणि— लम्बी पुष्पमाला, सड्डी— पुत्रोत्पत्ति में श्रद्धा रखने वाली स्त्री, पडियारणाए— मैथुन - सेवन करने के लिए आउट्टवेज्जा - प्रवृत्त करे, अभिमुख करे। साएजा — आकाँक्षा करे ।
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४२६. एतं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं ।
४२६. यही (शय्यैषणा- विवेक) उस भिक्षु या भिक्षुणी की (ज्ञानादि आचार की) समग्रता है।
॥ शय्यैषणा - अध्ययन का प्रथम उद्देशक समाप्त ॥
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बीओ उद्देसओ द्वितीय उद्देशक
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गृहस्थ-संसक्त उपाश्रय - निषेध
४२७ . गाहावती नामेगे सुइसमायारा भवंति, भिक्खु य असिणाणए मोयसमायारे से गंधे दुग्गंधे पडिकूले पडिलोमे यावि भवति, जं पुव्वकम्मं तं पच्छाकम्मं, जं पच्छाकम्मं तं पुव्वकम्मं, ३ ते भिक्खुपडियाए वट्टमाणा करेज्ज वा णो वा करेज्जा ।
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(क) पाइअसद्दमहण्णवो
(ख) आचारांग वृत्ति पत्रांक ३६२, ३६३
(ग) आचारांग चूर्णि मूलपाठ टिप्पण पृ० १४९
२. 'से गंधे दुग्गंधे' का तात्पर्य चूर्णिकार के शब्दों में— 'तेण तेसिं सो गंधो पडिकूलो' इस कारण उन (गृहस्थों) को वह गन्ध प्रतिकूल लगता है।
३. जं पुव्वकमं आदि पंक्ति का तात्पर्य चूर्णिकार के शब्दों में- "जं पुव्वकमं ति गिहत्थाणं पुव्वकमं उच्छोलंण, तं च पच्छा पव्वज्जाए वि कुज्जा, मा उड्डाहो होहिति, तत्थ बाउसदोआ, अह ण करेति तो उड्डाहो । अहवा ताई पुव्वपए जामेता ईओ पच्छा संजयउवरोहा, सुत्तत्थाणं उसूरे वा, पच्छिमाए पोरिसीए जेमेताइओ ताहं संजयाणं पाढवाघातो त्ति पदे चेव जिमिताई। उवक्खडणा वि, एवं प्रत्यागते उस्सक्कणं, उस्सक्कणदोसा भिक्खुभावो भिक्खुपडिया वट्टमाणा करेज्जा वा ण वा ।" अर्थात् — गृहस्थों का जो पूर्व कर्म - शरीर प्रक्षालन आदि का, उसे अब प्रवज्या लेने के पश्चात् भी करेगा, इसलिए कि निन्दा न हो। ऐसा करने से बकुश (विभूषादि से चरित्र को मलिन करने वाले) दोष होते हैं। यदि ऐसा नहीं करता है तो बदनामी होती है, अथवा साधुओं