SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम अध्ययन : अष्टम उद्देशक: सूत्र ३७५-३८८ बड़, पीपल, आदि का मंथु (चूर्ण), (७) जलज वनस्पतियाँ, (८) पद्म आदि कन्द के मूल आदि (९) अग्र-मूल-स्कन्ध- पर्व - बीजोत्पन्न वनस्पतियाँ, (१०) ईख, बेंत आदि की विकृति, (११) लहसुन और उसके सभी अवयव, (१२) आस्थिक आदि वृक्षों के फल, (१३) बीज रूप वनस्पति और तन्निर्मित आहार, (१४) अधपकी पत्तों की भाजी, सड़ी खली तथा विकृत गोरस जनित आहार । १ उत्तराध्ययनसूत्र (अ. ३६) में वनस्पतिकाय के मुख्यतया दो भेद बताए हैं— (१) साधारण और (२) प्रत्येक । साधारण वनस्पति में शरीर एक होता है, तथा प्राण आत्माएँ अनेक होती हैं, जैसे कन्द, मूल, आलू, अदरक, लहसुन, हल्दी आदि । प्रत्येक शरीरवाली वनस्पति (जिसके एक शरीर में आत्मा भी एक ही होती है) वृक्ष, गुल्म, गुच्छ, लता, वल्ली, तृण, वलय, पर्व, कुहुण, जलरुह, औषधि ( गेहूँ आदि अन्न), तने, हरित (हरियाली दूब आदि) अनेक प्रकार की होती है। २ १. २. ३. ४. यहाँ जितनी भी वनस्पतियों का निर्देश किया है, वे जब तक हरी, या कच्ची होती हैं, किसी स्व- काय, पर- काय पर उभय-काय शस्त्र से परिणत नहीं होतीं, या फल के रूप में परिपक्व नहीं होतीं, तब तक अप्रासुक (सचित्त ) और अनेषणीय मानी जाती हैं; वे साधु के लिए ग्राह्य नहीं होतीं । सालुयं आदि पदों के अर्थ शालूक आदि अपक्वरूप में खाए जाते हैं, इसलिए इनके ग्रहण का निषेध किया गया है। सालुयं उत्पल - कमल का कन्द (जड़)। यह जलज कन्द होता है । विरालियं पलाशकंद, विदारिका का कन्द। यह कन्द स्थलज और पत्ते से उत्पन्न होता है । ३ सासवनालियं सर्षप (सरसों) की नाल । ४ पिप्पलि कच्ची हरी पीपर । पिप्पल - चुण्णं हरी पीपर को पीस कर उसकी चटनी बनाई जाती है, या उसे कूट कर चूर-चूर किया जाता है, उसे पीपर का चूर्ण कहते हैं । मिरियं— काली या हरी कच्ची मिर्च | सिंगबेरं- कच्चा अदरक । सिंगबेरचुण्णं- कच्चे अदरक को कूट-पीस कर चटनी बनाई जाती है । ५ पलंब— लंबा लटकनेवाला फल । ६ पवाल - नवांकुर या किसलय नया कोमल पत्ता । ७ - आचारांग वृत्ति के आधार पर पत्रांक ३४७-३४८ उत्तराध्ययन सूत्र अ० ३६ गा० ९४ से १०० तक ― ५. आचारांग वृत्ति पत्रांक ३४७ ६. ७. ८९ - (क) आचारांग वृत्ति पत्रांक ३४७ (ख) दशवै० ५ / २ / १८ हारि० टीका प० १८५ दशवै ०५/२/१८ जिन० चूर्णि पृ० १९७ पाइअ - सद्द - महण्णवो पृ० ५६९ पाइअ - सद्द-महण्णवो पृ० ५७५
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy