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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
____३७६. गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि यह जाने के वहाँ पिप्पली, पिप्पली का चूर्ण, मिर्च या मिर्च का चूर्ण, अदरक या अदरक का चूर्ण तथा इसी प्रकार का अन्य कोई पदार्थ या चूर्ण, जो कच्चा (हरा) और अशस्त्र-परिणत है, उसे अप्रासुक जान कर मिलने पर भी ग्रहण न करे।
३७७. गृहस्थ के यहाँ आहार के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि वहाँ प्रलम्ब-फल के ये प्रकार जाने-जैसे कि - आम्र प्रलम्ब-फल, अम्बाडगफल, ताल-प्रलम्ब-फल, वल्ली-प्रलम्बफल, सुरभि-प्रलम्ब-फल, शल्यकी का प्रलम्ब-फल तथा इसी प्रकार का अन्य प्रलम्ब फल का प्रकार, जो कच्चा और अशस्त्र-परिणत है, उसे अप्रासुक और अनेषनीय समझ कर मिलने पर ग्रहण न करे।
३७८. गृहस्थ के घर में आहारार्थ प्रविष्ट साधु या साध्वी अगर वहाँ प्रवाल के ये प्रकार जाने- जैसे कि पीपल का प्रवाल, बड़ का प्रवाल, पाकड़ वृक्ष का प्रवाल, नन्दीवृक्ष का प्रवाल, शल्यकी (सल्लकी) वृक्ष का प्रवाल, या अन्य उस प्रकार का कोई प्रवाल है, जो कच्चा और अशस्त्र-परिणत है, तो ऐसे प्रवाल को अप्रासुक और अनेषणीय जान कर मिलने पर भी ग्रहण न करे।
३७९. गृहस्थ के घर में भिक्षार्थ प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि कोमल फल के ये प्रकार जाने- जैसे कि शलाद फल, कपित्थ (कैथ) का कोमल फल, अनार का कोमल फल, बेल (बिल्व) का कोमल फल अथवा अन्य इसी प्रकार का कोमल (शलाद) फल जो कच्चा और अशस्त्र-परिणत है, तो उसे अप्रासुक एवं अनेषणीय जान कर प्राप्त होने पर भी न ले। ..
३८०. गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि (हरी वनस्पति के) मन्थु-चूर्ण के ये प्रकार जाने, जैसे कि - उदुम्बर (गुल्लर) का मंथु (चूर्ण) बड़ का चूर्ण, पाकड़े का चूर्ण, पीपल का चूर्ण अथवा अन्य इसी प्रकार का चूर्ण है, जो कि अभी कच्चा व थोड़ा पीसा हुआ है और जिसका योनि-बीज विध्वस्त नहीं हुआ है, तो उसे अप्रासुक और अनेषणीय जान कर प्राप्त होने पर भी न ले।
३८१. गहस्थ के यहाँ भिक्षा के लिए प्रविष्ट साध या साध्वी यदि यह जान जाए कि वहाँ (अधपकी) भाजी है, सड़ी हुई खली है, मधु, मद्य, घृत और मद्य के नीचे का कीट (कीचड़) बहुत पुराना है तो उन्हें ग्रहण न करे, क्योंकि उनमें प्राणी पुनः उत्पन्न हो जाते हैं, उनमें प्राणी जन्मते हैं, संवर्धित होते हैं, इनमें प्राणियों का व्युत्क्रमण नही होता, ये प्राणी शस्त्र-परिणत नहीं होते, न ये प्राणी विध्वस्त होते हैं।
३८२. गृहस्थ के घर में भिक्षार्थ प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि यह जाने कि वहाँ इक्षुखण्डगंडेरी है, अंककरेलु, निक्खारक, कसेरू, सिंघाड़ा एवं पूतिआलुक नामक वनस्पति है, अथवा अन्य इसीप्रकार की वनस्पति विशेष है जो अपक्व (कच्ची) तथा अशस्त्र-परिणत है, तो उसे