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________________ ७६ आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध नीचे या ऊपर बैठे हों अथवा उस आहार पर चींटियाँ लगी हुई हों, मक्खियाँ बैठी भिनभिना रही हों या अन्य कोई उड़ने वाला प्राणी उस आहार पर बैठा हो या मंडरा रहा हो तो ऐसी स्थिति में उस आहार को सचित्त प्रतिष्ठित माना जाता है, साधु के लिए वह ग्राह्य नहीं होता। क्योंकिअहिंसा महाव्रती साधु अपने आहार के लिए किसी भी जीव को जरा-सा भी कष्ट नहीं दे सकता। यही कारण है कि वह इतना सावधानीपूर्वक चलता है। इस सूत्र में शंकित, मक्षित, निक्षिप्त, पिहित, संहत, दायक, उन्मिश्र, अपरिणत, लिप्त और छर्दित, इन दस एषणा-दोषों का समावेश हो जाता है।२ पानक-एषण ३६९. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से जं पुण पाणगजायं जाणेज्जा, तंजहाउस्सेइमं वारे संसेइमं वा चाउलोदगंवा अण्णतरं वा तहप्पगारं पाणगजातं अधुणाधोतं अणंबिलं अव्वोक्कंतं अपरिणतं अविद्धत्थं अफासुयं जाव णो पडिगाहेजा। अह पुणेवं जाणेज्जा चिरा धोतं अंबिलं वक्वंतं परिणतं विद्धत्थं फासुयं जाव पडिगाहेजा। १. तुलना करें - 'असणं पाणगं वा वि, खाइमं साइमं तहा। पुप्फेसु होज उम्मीसं, बीएसु हरिएसु वा ॥५७॥ तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं । देतियं पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥५८॥ असणं पागणं वा वि,खाइमं साइमं तहा। उदगम्मि होज निक्खित्तं, उत्तिगंपणगेसु वा ॥५९॥ तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं। बेतियं पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥६०॥ असणं पाणगं वा वि,खाइमं साइमं तहा। तेउम्मि होज निक्खित्तं, तं च संघट्टिया दए॥६१॥ तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं। देंतियं पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं॥६२॥ एवं उस्सक्किया ओसक्किया, उजालिया पज्जालिया निव्वालिया। उस्सिचिया निस्सिचिया, ओवत्तिया ओयरिया दए ॥६३॥ तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं। देंतियं पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥६४॥ होज कटुं सिलं वा वि, इट्ठालं वा वि एगया। ठावियं संकमट्ठाए, तं च होज चलाचलं ॥६५॥ -दसवै०५/उ०१ आचारांग टीका पत्र ३४५ के आधार पर ३. तुलना कीजिए-दशवैकालिक अ०५, उ०१, गा० १०६ ४. 'अव्वोक्कंत' के स्थान पर अव्वक्कतं पाठ मानकर चूर्णिकार ने अर्थ किया है-सचेयणं-सचेतन । २.
SR No.003437
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1990
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size10 MB
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