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________________ - ग्रन्थ अवलोकनार्थ नम्र सूचना है। - चाहे श्वेताम्बर परम्परा हो या दिगम्बर परम्परा हो, अंगप्रविष्ट आगम साहित्य में द्वादशांगी का निरूपण किया है। उनके नाम इस प्रकार हैं - १. आचारांग उपासकदशा २. सूत्रकृतांग अन्तकृद्दशा ३. स्थानांग अनुत्तरोपपातिकदशा ४. समवायांग प्रश्नव्याकरण ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति ११. विपाक ६. ज्ञाताधर्मकथा १२. दृष्टिवाद दिगम्बर परम्परा की दृष्टि से अंगसाहित्य विच्छिन्न हो चुका है, केवल दृष्टिवाद का कुछ अंश अवशेष है जो षट्खण्डागम के रूप में आज भी विद्यमान है। पर श्वेताम्बर दृष्टि से पूर्व साहित्य विच्छिन्न हो गया है, जो दृष्टिवाद का एक विभाग था। पूर्व साहित्य में से निर्मूढ आगम आज भी विद्यमान हैं। जैसे आचारचूला ', दशवैकालिक , निशीथ २, दशाश्रुतस्कन्ध', बृहत्कल्प ५, व्यवहार, उत्तराध्ययन का परीषह अध्ययन ' आदि । दशवैकालिक के नि!हक आचार्य शय्यम्भव हैं और शेष आगमों के निर्वृहक भद्रबाहु स्वामी हैं जो श्रुतकेवली के रूप में विश्रुत हैं। आगम विच्छिन्न होने का मूल कारण भगवान् महावीर के पश्चात् होने वाले दुष्काल आदि रहे हैं, क्योंकि उस समय आगम लेखन की परम्परा नहीं थी। आगम लेखन को दोषरूप माना जाता था। वर्तमान में जो आगम पुस्तक रूप में उपलब्ध हो रहे हैं, उसका सम्पूर्ण श्रेय देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण को है, जिनका समय वीर निर्वाण की दशवीं शताब्दी है। आचारांग का महत्त्व अंग साहित्य में आचारांग का सर्वप्रथम स्थान है। क्योंकि संघ-व्यवस्था में सर्वप्रथम आचार की व्यवस्था आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है। श्रमण-जीवन की साधना का जो मार्मिक विवेचन आचारांग में उपलब्ध होता है, वैसा अन्यत्र प्राप्त नहीं होता। आचारांग नियुक्ति में आचार्य भद्रबाहु ने स्पष्ट कहा है - मुक्ति का अव्याबाध सुख सम्प्राप्त करने का मूल आचार है। अंगों का सारतत्त्व आचार में रहा हुआ है। मोक्ष का साक्षात् कारण होने से आचार सम्पूर्ण प्रवचन की आधारशिला है। एक जिज्ञासा प्रस्तुत की गई, अंग सूत्रों का सार आचार है तो आचार का सार क्या है? आचार्य ने समाधान की भाषा में कहा - आचार का सार अनुयोगार्थ है, अनुयोग का सार प्ररूपणा है । प्ररूपणा का सार सम्यक् चारित्र और सम्यक् चारित्र का सार निर्वाण है; निर्वाण का सार अव्याबाध सुख है। इस प्रकार आचार मुक्तिमहल में प्रवेश करने का भव्य द्वार है। उससे आत्मा पर लगा हुआ अनन्त काल का कर्म-मल छंट जाता है। १. ३. ६. आचारांग वृत्ति-२९० २. दशवकालिक नियुक्ति गाथा १६ से १८ (क) निशीथभाष्य-६५०० (ख) पंचकल्पचूर्णी पत्र-१ दशाश्रुतस्कन्ध नियुक्ति गाथा-१, पत्र-१ ५. पंचकल्पभाष्य गाथा-११ दशाश्रुतस्कन्ध नियुक्ति गाथा-१, पत्र-१ उत्तराध्ययन नियुक्ति गाथा ६९।। अंगाणं किं सारो? आयारो तस्स हवइ किं सारो? अणुओगत्थो सारो, तस्स वि य परूवणा सारो ॥ -सारो परूवणाए चरणं तस्स वि य होइ निव्वाणं । निव्वाणस्स उ सारो अव्वाबाहं जिणाविंति ॥- आचारांग नियुक्ति-गा.१६/१७ [२१]
SR No.003436
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages430
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size9 MB
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