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________________ पंचम अध्ययन : पंचम उद्देशक : सूत्र १६६ १६१ ___ "काम ! जानामि ते मूलं, संकल्पात् किल जायसे। संकल्पं न करिष्यामि, ततो मे न भविष्यसि ॥" - 'काम ! मैं तुम्हारे मूल को जानता हूँ कि तू संकल्प से पैदा होता है। मैं संकल्प ही नहीं करूँगा, तब तू मेरे मन में पैदा नहीं हो सकेगा। निष्कर्ष यह है कि सूत्र १६४ में काम-निवारण के ६ मुख्य उपाय बताये गये हैं जो उत्तरोत्तर प्रभावशाली हैंयथा (१) नीरस भोजन करना - विगय-त्याग, (२) कम खाना - ऊनोदारिका, (३) कायोत्सर्ग - विविध आसन करना, (४) ग्रामानुग्राम विहार - एक स्थान पर अधिक न रहना, (५) आहार-त्याग - दीर्घकालीन तपस्या करना तथा (६) स्त्री-संग के प्रति मन को सर्वथा विमुख रखना। इन उपायों में से जिस साधक के लिए जो उपाय अनुकूल और लाभदायी हो, उसी का उसे सबसे अधिक अभ्यास करना चाहिए। जिस-जिस उपाय से विषयेच्छा निवृत्त हो, वह-वह उपाय करना चाहिए। वृत्तिकार ने तो हठयोग जैसा प्रयोग भी बता दिया है' - 'पर्यन्ते"अपि पातं विदध्यात् अप्सुद्वन्धनं कुर्यात्, न च स्त्रीषु मनः कुर्यात् ।' सभी उपायों के अन्त में आजीवन सर्वथा आहारत्याग करे, ऊपर से पात (गिर जाय), उद्बन्धन करे, फांसी लगा ले किन्तु स्त्री के साथ अनाचार सेवन की बात भी मन में न लाए। ॥ चतुर्थ उद्देशक समाप्त ॥ पंचमो उद्देसओ पंचम उद्देशक आचार्य-महिमा १६६. से बेमि, तं जहा - अवि हरदे पडिपुण्णे चिट्ठति समंसि भोमे उवसंतरए सारक्खमाणे । से चिट्ठति सोतमझए । से पास सव्वतो गुत्ते । पास लोए महेसिणो जे य पण्णाणमंता पबुद्धा आरंभोवरता। सम्ममेतं ति पासहा। कालस्स कंखाए परिव्वयंति त्ति बेमि। १६६. मैं कहता हूँ - जैसे एक जलाशय (हृद) जो (कमल या जल से) परिपूर्ण है, समभूभाग में स्थित है, उसकी रज उपशान्त (कीचड़.से रहित) है, (अनेक जलचर जीवों का) संरक्षण करता हुआ, वह जलाशय स्रोत के मध्य में स्थित है। (ऐसा ही आचार्य होता है)। इस मनुष्यलोक में उन (पूर्वोक्त स्वरूप वाले) सर्वतः (मन, वचन और काया से) गुप्त (इन्द्रिय-संयम से युक्त) महर्षियों को तू देख, जो उत्कष्ट ज्ञानवान् (आगमज्ञाता) हैं, प्रबुद्ध हैं और आरम्भ से विरत हैं। आचा० शीला० टीका पत्रांक १९८ २. आचा० शीला० टीका पत्रांक १९८ १.
SR No.003436
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages430
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size9 MB
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