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________________ नित्य परिवर्तनशील प्रकृतिवाले और क्रान्तिमें हो जीवनका विकाश अनुभव करनेवाले मनुष्यके मनमें वर्षों तक पुराने विचारोंका संग्रह कर रखना, और फिर जब चाहें तब उन्हें अपने सम्मुख एकदम उपस्थित हो जानेकी आदत बनाये रखना दुःसाध्य-सा है। जेलमुक्ति होनेपर विधाता हमें शान्तिनिकेतन खींच लाया। विश्वभारतीके ज्ञानमय वातावरणने हमारे मनको फिर ज्ञानोपासनाकी तरफ खींचना शुरू किया और हमारी जो स्वाभाविक संशोधन-रुचि थी, उसको फिर सतेज बनाया। वर्षोंसे हमने २४ ऐतिहासिक ग्रन्थोंके सम्पादन और संशोधनका संकल्प कर रखा था और उसका कुछ काम हो भी चुका था, इसलिये रह-रहकर यह तो मनमें आया ही करता था कि यदि इस संकल्पके पूरा करनेका कोई मनःपूत साधन सम्पन्न हो जाय, तो एक बार इसको पूरा कर लेना अच्छा है। बाबू श्री बहादुरसिंहजी सिंघीके उत्साह, औदार्य, सौजन्य और सौहार्दने हमारे इस संकल्पको एकदम मूर्तिमन्त बना दिया और हम जो सोचते थे, उससे भी कहीं अधिक मनःपूत साधनकी संप्राप्ति देखकर परिणाममें हमने सिंधी जैन ज्ञानपीठ और सिंघी जैन ग्रन्थमाला का भार उठाना स्वीकार किया। जबसे हम यहां आये, तभीसे इस संग्रहके लिये श्री नाहरजीका बराबर स्मरण दिलाना चालू रहा। हम भी आज लिखते हैं, कल लिखते हैं, ऐसा जवाब देकर उन्हें आशा दिलाते रहते थे। बहुत समय बीत जानेके कारण इस विषयमें जो कुछ हमारे पुराने विचार थे और जो कुछ हमने लिखना सोचा था, वह स्मृति-पटपर से अस्पष्ट हो गया। जिन प्रतियोंपरसे यह संग्रह मुद्रित हुआ था, वे भो पासमें नहीं रहनेसे, इस विषयमें क्या लिखें, कुछ सूझ नहीं पड़ती थी । विज्ञप्ति त्रिवेणि', 'कृपारस कोष', 'शत्रुजय तीर्थोद्धार प्रबन्ध इत्यादि पुस्तकोंके प्रणयनके बाद हमारा हिन्दी-लेखन प्रायः बन्द-सा ही है। पिछले कई वर्षोंसे निरन्तर गुजराती भाषा ही में चिन्तन, मनन, लेखन, और वाग्व्यवहार चलते रहनेसे हिन्दी-भाषाका एक तरहसे परिचय ही छूट गया, इस कारणसे कुछ हिन्दी लिखनेका ठोक-ठीक चित्तैकाम्य न हो पाता था, लेकिन इन दिनोंमें हमारा साहित्य-संग्रह हमारे पास पहुंच गया और वर्षोंसे संदूकोंमें बंद पड़े हुए पुराने कागज़ों और टिप्पणोंको उथल पुथल करते हुए इस विषयके कुछ साधन भी हाथमें आ गये, जिससे ये पंक्तियां लिखनेका मनमें कुछ विचार हो आया। बस यही इस संग्रहके बारेमें हमारा किश्चित् वक्तव्य है। ___ श्वेताम्बर जैन संघ जिस स्वरूपमें आज विद्यमान है, उस स्वरूपके निर्माणमें खतरतरगच्छके आचार्य, यति और श्रावक-समूहका बहुत बड़ा हिस्सा है। एक तपागच्छको छोड़कर दूसरा और कोई गच्छ इसके गौरवकी बराबरी नहीं कर सकता। कई बातोंमें तपागच्छसे भी इस गच्छका प्रभाव विशेष गौरवान्वित है। भारतके प्राचीन गौरखको अक्षुण्ण रखनेवालो राजपूतानेकी वीर भूमिका पिछले एक हजार वर्षका इतिहास ओसवाल जातिके शौर्य, औदार्य, बुद्धि-चातुर्य और वाणिज्य-व्यवसाय-कौशल आदि महद् गुणोंसे प्रदीप्त है और उन गुणोंका जो विकाश इस जातिमें इस प्रकार हुआ है, वह मुख्यतया खरतरगच्छके प्रभावान्वित मूल पुरुषोंके सदुपदेश तथा शुभाशीर्वादका फल है। इसलिये खरतरगच्छका उज्ज्वल इतिहास यह केवल जैन संघके इतिहासका ही एक महत्त्वपूर्ण प्रकरण नहीं है, बल्कि समग्र राजपुतानेके इतिहासका एक विशिष्ट प्रकरण है। इस इतिहासके संकलनमें सहायभूत होनेवाली विपुल साधन-सामग्री इधर-उधर नष्ट हो रही है। जिस तरहको पट्टावलियां इस संग्रहमें संगृहीत हुई हैं, वैसी कई पट्टावलियां और प्रशस्तियां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003435
Book TitleKhartargaccha Pattavali Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBabu Puranchand Nahar
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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