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________________ जनार एबा कोई सीखाउ लहियाओना हाथे आ नकलो थई छे तेथी एमां, ए लहियाओए, एक अक्षरना बदले बीजो अक्षर लखी नांखी, ग्रन्थनी अशुद्धिमां घणो वधारो करी दीधो छ । उदाहरण तरीके–'ए' अक्षरनी जग्याए 'प'; 'थ' नी जग्याए 'घ', 'द्र' ना बदले 'इ', 'स्त' ना बदले 'सू'; 'भ' ना माटे 'त'; अने 'घ' ना माटे 'ब'; एम पंक्तिए पंक्तिए अनेक वर्णोनो विपर्यय करी दीधेलो नजरे पडे छ। आम, जूनी अने शुद्ध प्रतिनी प्राप्तिना अभावे ए व्याख्याना संशोधनमा घणी कठिनता अनुभववी पडी छे अने तेथी कचित्स्थळे तो अशुद्ध पाठने ज स्थानस्थित राखवो पड्यो छे । जिनभद्रगणि-क्षमाश्रमण आ जीतकल्पसूत्रना कर्ता जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण छे, एम चूर्णिकारनो स्पष्ट उल्लेख छ; अने अन्यान्य टीकाकारोए तथा अन्य ग्रंथकारोए पण ए बाबतनो घणा ठेकाणे निर्देश करेलो छ । __ आवश्यक सूचना सामायिकाध्ययन ऊपरनुं लगभग पांच हजार ग्रन्थप्रमाण प्राकृतगाथाबद्ध भाष्य के जे विशेषावश्यक भाष्यना नामे सुप्रसिद्ध छे तेना कर्ता पण आ ज जिनभद्र गणी छे । आ भाष्यग्रन्थ जैन प्रवचनमा एक मुकुटमणि समान लेखाय छे अने तेथी भाष्यकार जिनभद्रगणी जैनशास्त्रकारोमां अग्रणी मनाय छे । जैन दर्शन प्रतिपादित ज्ञानविषयक विचारने केवळ श्रद्धागम्य-विषयनी कोटिमाथी बुद्धिगम्य-विषयनी कोटिमा उतारवानो सुसंगत प्रयत्न, सौथी प्रथम एमणे ज ए महाभाष्यमां को होय, एम जैन साहित्यना विकासक्रमनुं सिंहावलोकन करतां जणाई आवे छे । जैन आगमोना संप्रदायगत रहस्य अने अर्थना, पोताना समयमां अद्वितीय ज्ञाता तरीके, ए आचार्य सर्वसम्मत गणाता हता; अने तेथी एमने 'युगप्रधान एवं महत्वख्यापक उपपद मळेलु हतुं । जीतकल्पचूर्णिना कर्ताए, प्रारंभमां, ५ थी ११ मा सुधीना पद्यमां आ आचार्यनी जे गंभीरार्थक स्तुति करेली छे ते ऊपरथी एमनी ज्ञानगंभीरता अने सांप्रदायिक प्रतिष्ठितता, काईक सूचन थाय छे । आ पद्योनो भावार्थ आ प्रमाणे छे: ५. अनुयोग एटले आगमोना अर्थ ज्ञानना धारक, युग-प्रधान, प्रधानज्ञानियोने बहुमत, सर्व श्रुति अने शास्त्रमा कुशल, अने दर्शन-ज्ञान उपयोगना मार्गस्थ एटले मार्गरक्षक । ६. कमलना सुवासने अधीन थएला भ्रमरो जेम कमलनी उपासना करे छे तेम ज्ञानरूप मकरन्दना पिपासु मुनियो जेमना मुखरूप निर्झरमांथी नीकळेला ज्ञानरूप अमृतनुं सदा सेवन करे छ । ७. ख-समय अने पर-समयना आगम, लीपि, गणित, छन्द अने शब्दशास्त्रो ऊपर करेलां व्याख्यानोथी निर्मित थएलो जेमनो अनुपम यशःपटह दशे दिशाओमां भमी रहेलो छ। ८. जेमणे पोतानी अनुपम मतिना प्रभावे ज्ञान, ज्ञानी, हेतु, प्रमाण, अने गणधरपृच्छानुं सविशेष विवेचन विशेषावश्यकमां ग्रन्थनिबद्ध कर्यु छ । ९. जेमणे छेद सूत्रोना अर्थाधारे, पुरुष विशेषना पृथक्करण प्रमाणे, प्रायश्चित्तना विधिनुं विधान करनार जीतकल्पसूत्रनी रचना करी छ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003434
Book Titleagam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samiti
Publication Year1926
Total Pages92
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jitkalpa
File Size6 MB
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