________________
४०
पश्चिमी भारत की यात्रा एवं उसकी श्रीमती के स्वास्थ्य को विशेष अवस्था के कारण उनको प्रायद्वीप के विभिन्न भागों की यात्रा करनी पड़ी। इन्हीं यात्राओं के प्रसंग में सेवॉय (Savoy) से गुजरते हुए वह काउण्ट डी बॉइने (Count de Boigne) से भेंट करने गया, जो सिन्धिया का सुप्रसिद्ध सेनापति था और जिसकी अनुशासित सेना के सामने अशिक्षित राजपूतों का शौर्य भी कुछ काम न कर सका था; नतीजा यह हुआ कि सन् १७६० ई० में मेड़ता के रणक्षेत्र में स्वतंत्रता की वेदी पर चार हजार राजपूतों का बलिदान हो गया। कर्नल टॉड ने उस परम अनुभवी जनरल के चम्बेरी (Chamberi) की सुरम्य घाटी में स्थित शाही निवासस्थान पर प्रानन्दपूर्वक दो दिन व्यतीत किए।
अपनी इन यात्राओं में और जब-तब इङ्गलैण्ड में आकर ठहरने के समय में वह कभी निठल्ला नहीं बैठा अपितु अपने समय, धन और स्वास्थ्य का भरपूर उपयोग साहित्य-साधना में करता रहा । पौर्वात्य विषयों के अध्ययन, निजी ज्ञान और अनुभवों को संसार भर में फैला देने की योजनाएं उसके विकसित मस्तिष्क में उमड़ती रहती थी जिसके कितने ही प्रमाण उसके शोध-पत्रों से स्पष्ट व्यक्त होते हैं । उसने चन्द' के काव्य का अनुवाद करने की योजना बनाई
, भविष्य-कथन की विशिष्ट शक्ति के कारण त्रिकाल' (दशी) कहलाने वाले 'चान्द'
अथवा 'चन्द' के विषय में कर्नल टॉड ने अपने लेखों में यत्र-तत्र टिप्पणियां की हैं। उसका समय बारहवीं शताब्दी का अन्तिम चरण था । वह दिल्ली के अन्तिम चौहान सम्राट पृथ्वीराज का साथी और राजकवि था। उसके काव्य में उनहत्तर अध्याय है, जिनमें १,००,००० पद्य हैं। इनमें यद्यपि पृथ्वीराज के ही पराक्रमपूर्ण कार्यों का वर्णन है, फिर भी यह रचना-समय का एक व्यापक इतिहास है। इस सेनानी सम्राट के युद्ध, उसकी मित्रताएं, उसके शक्तिशाली अनेक सामन्त, उनके गढ़ और वंशपरम्परा, जिनका विवरण चन्द ने इस काव्य में दिया है, सब मिल कर इसको ऐतिहासिक, भौगोलिक और पौराणिक चित्रों एवं रंग-ढंग-सम्बन्धी बहुमूल्य असाधारण संस्मरणों का प्राकर-ग्रन्थ बना देते हैं । कर्नल टॉड का कहना है "इस ग्रन्थ का अच्छी तरह पाठ करना प्रानन्द का निश्चित मार्ग है। और मेरे 'गुरु' इसमें परम प्रवीण थे। वे पढ़ते थे और मैंने साथ-केसाथ ३०,००० पद्यों का अनुवाद कर डाला था। जिन बोलियों में यह काध्य लिखा गया है उनसे परिचित होने के कारण मुझे कई बार ऐसा भान होता था कि मैंने कवि के भावों को पकड़ लिया है। परन्तु, यह कहना तो अनुमान मात्र होगा कि मैं अपने अनुवाद में भी उसका सम्पूर्ण चमत्कार ले पाता था अथवा उसके सन्दर्भो को पूरी गहराई को अच्छी तरह समझ लेता था । परन्तु, यह में अवश्य जान जाता था कि वह किसके विषय में लिख रहा है। उसके द्वारा प्रस्तारित प्रसिद्ध चित्रों [पात्रों और भावों को में नित्य-प्रति उन लोगों के मुख से सुनता था जो मेरे प्रासपास सदैव ही बने रहते थे और जो उन मनुष्यों के
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org