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________________ ३४ ] पश्चिमी भारत की यात्रा करती थीं। वह कहता है "मैंने प्रायः सभी जात के बीस हजार सिक्के इकट्रे कर लिए थे; उनमें सौ से अधिक ऐसे नहीं थे कि जिन पर ध्यान देना पावश्यक हो और इस संख्या का एक-तिहाई ही ऐसा था जो मूल्यवान कहा जा सकता था; परन्तु, इन्हीं में एक अपोलोडोटस का और कुछ-एक मीनान्डर के सिक्के भी हैं जो उन थोड़े से पार्थिअन सिक्कों के अतिरिक्त हैं, जो अभी प्रायः इतिहास में अज्ञात हैं ।' इस शोध-पत्र ने योरप महाद्वीप के बहुत से विद्वानों का ध्यान आकर्षित किया और इन्हीं सिक्कों के विषय में मिस्टर ए. डब्ल्यू. वॉन श्लोगल (Mr. A. W. Von Schlegal) ने पेरिस की सोसाइटी के सामने एक शोध-पत्र पढ़ा। तभी से और सम्भवतः इस खोज के पश्चात् पश्चिमी भारत और अफगानिस्तान में ऐसे सिक्कों के संग्रह के प्रति लोगों का उत्साह बढ़ा है, जो अब बड़ी तादाद में मिलते हैं; और, सौभाग्य से बंगाल की एशियाटिक सोसाइटी के सचिव मि० जेम्स प्रिंसेप द्वारा चतुराई से इनके अक्षरों की कुञ्जी ढूंढ़ निकालने पर ऐसा ज्ञात हुआ है कि पाख्यानों की रचना सर्वसाधारण की बोली में अथवा सरलीकृत संस्कृत में हुई है। इससे पूर्व और पश्चिम के सम्बद्ध इतिहास में खोज की नई दिशाएं भी उन्मुक्त हो गई हैं, जिससे, जैसा कि पहले कहा गया है, बहुत ही महत्वपूर्ण ऐतिहासिक परिणाम सामने आए हैं । ___ इनके अतिरिक्त जो शोध-पत्र उसने सोसाइटी को समर्पित किए वे इस प्रकार हैं-'मेवाड़ के धार्मिक संस्थानों का विवरण' (१८२८ ई० में पठित), जो बाद में राजस्थान का इतिहास' में समाविष्ट कर दिया गया; 'एलोरा के गुहामन्दिरों की कुछ मूर्तियों पर विचार' (१८२८ ई० में ही पठित); 'स्कॉटलैण्ड में मान्ट्रोस (Montrose) नामक स्थान पर प्राप्त स्वर्ण मुद्रिका की हिन्दू बनावट पर विचार;' और "एक हिन्दू पद्धति से उत्कीर्ण चित्र के आधार पर हिन्दू और थीबन (Thiban) हक्यूं लीज़ की तुलना" (दोनों ही १८३० ई० में पठित) । • 'इतिहास' (भा० १, पृ. ४०) में उसने लिखा है कि अपोलोडोटस का सिक्का उसको १८८४ ई० में मिला था जब उसने सिकन्दर के इतिहासकारों द्वारा नणित सूरसेनी [शौरसेनी की प्राचीन राजधानी सूरपुर नगर के अवशेषों को खोज निकाला था। वह कहता है, "भारत के मैदानों में बहुत से प्राचीन नगर दबे पड़े हैं, जिनके अवशेषों में कोई न कोई ऐसी वस्तु मिल हो जाती है जिससे हमारे ज्ञान की कुछ-न-कुछ वृद्धि अवश्य होती है।" कर्नल टॉड द्वारा उपलब्ध बॅन्मिन और इण्डो-सोयिक सिक्कों पर विचार'-जर्नल एशियाटिके, नवम्बर, १८२८ ई० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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