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पश्चिमी भारत की यात्रा उसने मेवाड़ की राजधानी को पहली जून, १८२२ ई० के दिन आखिरी सलाम किया; १४ जनवरी, १८२३ ई० को बम्बई पहुँचा और अगले मास में इंग्लैण्ड के लिए जहाज में सवार हो गया ।
प्रतिकूल जलवायू में रह कर कितने ही वर्षों तक कठिन उद्वेजक परिश्रम करने के कारण शरीर और मस्तिष्क में जो थकान आ गई थी उसको दूर करने के लिए एक लम्बे अरसे तक छेड़ और शान्तिपूर्ण पाराम की आवश्यकता थी; परन्तु, उसके उदार प्राशय की पूर्ति उस समय तक नहीं हो पाती जब तक कि यह संसार के सामने अपने अर्जित ज्ञान का प्रसार न कर देता और 'अपने राजपूतों का, जैसा कि वह स्नेह से कहा करता था, योरप के लोगों को परिचय न करा देता। सावधानी से अपने स्वास्थ्य-सुधार में लगने के बजाय वह अपने सुविचारित कार्य के लिए संग्रहीत विपुल सामग्री' को व्यवस्थित करने में व्यस्त हो गया, जिसके लिए अथक परिश्रम और अध्ययन आवश्यक थे। इस प्रकार शारीरिक शक्तियों पर अत्यधिक दबाव डालने के फलस्वरूप १८२५ ई० में, उसके प्रयासों में एक उसी प्रकार के (बीमारी के) दौरे के कारण व्यवधान आ पड़ा जैसा कि उसे दस वर्ष पहले हुआ था, और (आगे चल कर) इसी ने उसके बहुमूल्य जीवन का अन्त कर दिया।
उसके इङ्गलैण्ड पहुँचने से कुछ ही पहले 'रायल एशियाटिक सोसायटी' की स्थापना हो चुकी थी (मार्च, १८२३ ई०); कर्नल टॉड ने तुरन्त ही अपना नाम इसके सदस्यों में लिखा लिया और तदनन्तर वह इसका पुस्तकालयाध्यक्ष नियुक्त हो गया; इस पद पर वह तब तक बना रहा जब तक उसके स्वास्थ्य ने साथ दिया। मई, १८२४ ई० में उसने एक शोध-पत्र पढ़ा जो एक संस्कृत शिलालेख के (जिसकी नकल शोध-पत्र के साथ संलग्न थी) अनुवाद और उस पर टिप्पणी के रूप में था; यह दिल्ली के अन्तिम हिन्दू सम्राट से सम्बद्ध था। यह लेख उसको हांसी-हिसार से (दिल्ली से उ. उ. प. में लगभग १२६ मील पर) प्राप्त हुधा था जब वह सिन्धिया दरबार में अपना पद छोड़ कर अपने मित्र स्वर्गीय जेम्स लम्सडेन (James Lumsdaine) से मिलने गया था। इस शिलालेख का
। उसके हस्तलिखित ग्रन्थों, सिक्कों और अन्य प्राचीन पदार्थो पर, जिनमें से अत्यधिक
मूल्यवान वस्तुएं इण्डिया हाउस अथवा रॉयल एशियाटिक सोसाइटी में जमा कराई गई थीं, इस देश (इंगलैण्ड) में भारी महसूल वसूल किया गया था। उसके कागज पत्रों में इन चीजों की एक लम्बी सूची है जिसके साथ चुंगी के ७२ पाउण्ड चुकाने की रसीद भी है; उस पर उसके स्वयं के हस्ताक्षरों में लिखा है 'प्राच्य साहित्य को प्रोत्साहन'
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