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________________ परिशिष्ट [ ५११ कहा “जाओ और देवपत्तन के तीरन (Teerun) (तोरण या जीर्ण ?) मन्दिरों का जीर्णोद्धार करायो।" "भाव बृहस्पति ने उन्हें कैलास के समान बनवा दिया। उसने विश्वाधिपति (राजा) को अपना काम देखने के लिए आमन्त्रित किया। जब उसने देखा तो अपने गुरु की प्रशंसा में कहा “मेरा हृदय आनन्दित है; मैं तुमको और तुम्हारे पुत्रों (वंशजों) को मेरे राज्य में प्रधानता प्रदान करता हूँ।" प्रथम, चन्द्रमा ने स्वर्णमन्दिर खड़ा किया; फिर, रावण ने चांदी का मन्दिर बनवाया। बाद में, कृष्ण भीमदेव ने इसका पुननिर्माण कराया और इसमें जवाहरात जड़वाये; और फिर कुँअर (कुमार)पाल ने एक बार पुनः इसको मेरु के सदृश बना दिया । गूर्जनमण्डली (गुर्जर-मण्डल) के स्वामी ने ब्रह्मपुर (ब्राह्मणों की बस्ती) (ब्रह्मपुरो) के लिये भूमि और धन प्रदान किया। उसने दक्षिण में सोमनाथ के मन्दिर से लेकर उत्तर में ब्रह्मपुरी तक परकोटा खिंचवाया। सिद्धेश्वर और भीमेश्वर आदि सभी (देवताओं) के मन्दिरों का जीर्णोद्धार हुआ और सभी पर स्वर्णकलश चढ़ाए गए। कुत्रों, सरोवरों, यात्रियों के लिए भवनों, जल के टॉकों से देव-मन्दिर तक रजत-जल-कुल्यायों और देव (प्रतिमा) के लिए सिंहासन (आदि का निर्माण हुआ)। रुक्मण (रुक्मिणी) द्वारा बनवाये हुए पाप-मोचनेश्वर के मन्दिर का भी, जो तोड दिया गया था, पुननिर्माण हुआ। बलभी सं० ८५०२ ' 'चरित्र' में लिखा है कि मन्दिर का स्वर्णकलश बृहस्पति ने बनवाया था। • बलभी संवत् ८५०+३७५ वि० सं० १२२५, ई० सन १९६६। यह समय कुमारपाल के बाद एक को छोड़कर दूसरे उत्तराधिकारी भीमदेव के पाटण को गद्दी पर बैठने * प्रभास पाटण में सुप्रसिद्ध सोमनाथ का मन्दिर है । यह नगर जूनागढ़ के अधिकार में था । यहां भद्रकाली का भी एक मन्दिर है जिसके प्रवेश-द्वार के दाहिनी तरफ एक शिला पर यह लेख है । यह 'भावनगर प्राचीन संस्कृत इंस्क्रिप्सन्स' के पृ० १५५ पर प्रकाशित हुआ। इसमें लिखा है कि कुमारपाल ने अपने गुरु भाव बृहस्पति के आदेशानुसार बहुत से शिव और अम्बिका के मन्दिरों का निर्माण कराया तथा बहुतों का जीर्णोद्धार भी कराया। इसी प्रकार एक वापिका बनवाई और अनेक ब्राह्मणों को दान में भूमि प्रदान की । लेख का समय वलभी संवत् ८५० (ई. सन् १९६९; वि० सं० १२२५) है । लेख इस प्रकार है। १. प्रों नमःशिवाय नाहं भवत: सहे सुरधुनीमंतजंटानामतः, कर्णे लालयसि कमेण कितयोत्संगेऽपि ता धास्यसि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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