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________________ प्रन्थकर्ता-विषयक संस्मरण टॉड ने अपने हाथ से लिखा है उसके संक्षेप अथवा सार का अवलोकन करने से विदित होगा कि उस ज्वलंत एवं निर्णायक अभियान की सफलताओं में उसका कितना बड़ा योग था। __ जब पिण्डारियों के विरुद्ध कार्यवाही प्रारंभ हुई ही थी तब वह दो पैदल व आधी घुड़सवार कम्पनियों का अधिकारी था। ये कम्पनियाँ सिन्धिया दरबार में रेजीडेन्सी की रक्षा के लिए नियुक्त थीं । सन् १८१४-१५ ई० में उसने पिण्डारियों के उद्भव, बढ़ाव और तत्कालीन स्थिति के विषय में एक स्मरण-पत्र भेजा । इसके बाद ही उसने इन क्षेत्रों का नक्शा, यहाँ का भौगोलिक, राजनीतिक और भौतिक इतिहास' तथा उन लुटेरों के दमन की एक सामान्य योजना भी भेजी जिसके तुरन्त बाद ही प्रत्यक्ष अभियान शुरू हो गया। जैसे ही परिस्थितियां बदलों उसने दूसरी परिशोधित योजना भेजो जिसके साथ नर्मदा के उत्तर में स्थित प्रदेशों का अध्ययनपूर्ण मानचित्र भी था; उसने इस बात पर बल दिया कि अभियान इस योजना का पूर्णत: अनुसरण करे। इन सूचनाओं के लिए उसे लार्ड हेस्टिग्स् के हार्दिक धन्यवाद प्राप्त हुए और उन मानचित्रों की नकलें मोर्चे पर प्रत्येक जनरल के मुख्यालय को भेज दी गई। इनमें से अन्तिम लेख जो गवर्नर जनरल के पास पहुँचा वह इतना महत्वपूर्ण समझा गया (जैसा कि उसने कप्तान टॉड को सूचित किया) कि उसकी नकलें दक्षिण के सेनाध्यक्ष सर थॉमस हिसलॉप (Sir Thomas Hisiop) के पास तुरन्त ही 'जरूरी डाक' द्वारा भेज दी गईं। सैन्य अभियान के लिए ऐसी मूल्यवान् सामग्री तैयार करने के उपरान्त उसने किसी भी सेना-विभाग में भेजे जाने के लिए निजी सेवाएं समर्पित की और उसकी इस प्रार्थना को लार्ड हेस्टिग्स् ने इन शब्दों के साथ स्वीकार कर लिया "इस महत्त्वपूर्ण अवसर के लिए आपकी सेवाओं पर बहुत समय से मेरी दृष्टि लगी हुई थी।" पहले तो यह सोचा गया कि उसे सर अॉक्टर लोनी के सेना-खण्ड में लगाया जाय परन्तु बाद में विचार हुआ कि हाडौती में रावता' नामक स्थान पर तैनात किए जाने से उसके विस्तृत ज्ञान का अधिक १ 'इतिहास राजस्थान' भा. २, पृ. ३४५ पर आमेर के पुरावत्त में ऐसे विवेचन का उदा. हरण देखा जा सकता है जो गव्हर्नमेंट को भेजे हुए विवरण से ज्यों का त्यों मिलता हुआ है। २ अपने प्रात्म-विवरण' (इतिहास, २, पृ० ७००) में कोटा यात्रा के अवसर पर १८२० ई० में इस स्थान पर डेरा लगाने का वर्णन करते हुए यह कहता है "रावता बहुत से उत्साहपूर्ण संस्मरणों से परिवत है; १८१७-१८ ई० के अभियान में लगातार मैं यहीं पर जमा रहा। यह स्थान सभी मित्र और शत्रु सेनाओं की हलचल के बीच में पड़ता था।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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