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________________ प्रकरण - २३, उपसंहार [५०३ सो भी जाता था, खास तौर से गर्मी के दिनों में, जब बाहर निकल कर व्यायाम करना असम्भव होता था। उस देश के गहरे नीले आकाश की आभा में यह तारा अपने सुनहरी प्रभा-मण्डल के साथ ऐसा चमकता था कि मैं क्या कहूँ ? और, जब इस तरह का चन्दोवा मेरे सिर पर होता था तो में अपने आपको एक पूरा 'साबा-निवासी' अरबी सरदार मान लेता था । यदि मेरे निवासस्थान की जहाजी तख्ते-जैसी उस छत के आर-पार एक देशान्तरीय रेखा खींची जाय और अवकाश में सीधी बढ़ाई जाय तो वह ध्रुव तारे पर जाकर खतम होगी, जो नगर के दिल्ली-दरवाजे पर लम्बमान रहता है। इसलिए यह नक्षत्र वर्षों तक रात्रीय चहल कदमी में मेरा पथ-प्रदर्शक रहा है अथवा जब कभी में चन्द्र-ग्रहण का या किसी बृहस्पतिगत चन्द्रमा का अवलोकन करता तो वह मेरा सलाम ग्रहण करता था। उस आनन्दमयी घाटी और पास-पास की छोटी-सी दुनिया के दृश्यों की याद दिलाने वाला, जिनसे मुझे कभी तृप्ति नहीं हुई, अब एक ही चित्ताकर्षक पदार्थ रह गया था और इस 'उत्तरी ध्रुव नक्षत्र' के अतिरिक्त और कौन सी ऐसी वस्तु हो सकती थी जो हठात् मेरे सामने अतीत के चित्र उपस्थित करती? इस नक्षत्र की क्रमिक अस्तंगति को, जैसे-जैसे हम अक्षांश से नीचे उतरते गए, मैं टकटकी लगाकर देखता रहा । जब वह लहरों में डूब कर मेरी दष्टि से प्रोझल हो गया तो मुझे ऐसा लगा मानो किसी मित्र का वियोग हो गया-पोर जब हम उत्तरी अतला. न्तिक समुद्र में यात्रा कर रहे थे तो मैंने उसके पुनरुदय का प्रसन्नता से स्वागत किया। पाठकों का इस बात से कोई वास्ता नहीं है कि मैं सैण्ट हैलॅना' (St. Helena) में ठहरा और वहीं मैंने अपनी यात्रा का उपसंहार उस 'मनुष्यों में सब से महान्, किन्तु निकृष्ट नहीं' की मजार पर किया, जिसके विशाल मस्तिष्क की प्रवृत्तियों का साक्षात्कार मैंने कितने ही देशों में किया है 'नासमझी के ताने-बाने में बुनी महत्वाकांक्षा, तुम कितनी सिकुड़ गई हो ? जब इस शरीर में जीवन था, तो एक पूरा साम्राज्य भी उसके लिए बहुत छोटा और सीमित था; परन्तु, अब बुरी से बुरी दो कदम जमीन ही इसके लिए पर्याप्त है।' अक्टूबर २८, १८३५ ई० ॥ • सेण्ट हेलेना में नेपोलियन की १९२१ ई. में मृत्यु हुई थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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