________________
४६४]
पश्चिमी भारत की यात्रा मराठा-युद्धों के कारण बड़ोदा का गायकवाड़ दरबार हमारे प्रभाव में पा चुका है जिससे सौराष्ट्र के प्रायद्वीप में उसके अधीनस्थ राज्यों में भी हमारा दखल हो गया; और वहाँ से यद्यपि हमारे और कच्छ के बीच में एक खाड़ी ही हैं, परन्तु कदम-कदम बढ़ते हुए हम बहुत दूर सिन्ध के लोगों के सम्पर्क में आ गए हैं।
यूरोपीय सामन्ती प्रणाली की तरह एकता के बन्धन और वरिष्ठता के प्रतीक चिह्नों का प्रभाव होते हुए भी रावों और सामन्तों के बीच में भूमि का ऐसा विभाजन हो रहा था कि यदि ठीक-ठीक प्रबन्ध किया जाता तो सामन्ती शक्ति छिन्न-भिन्न हो जाती और समस्त अधिकार राजाओं के हाथ में आ जाते। समस्त सामन्ती संघ की अपेक्षा राजा का खालसाई क्षेत्र अधिक बड़ा है और इसकी प्राय में कुछ नगरों और कस्बों के व्यापारिक कर से और भी अभिवृद्धि हो जाती है। इन साधनों से प्राप्त सुविधाओं का उपयोग करते हुए वह राजा सामन्तों में से कुछ की सेवाएं सरलता से प्राप्त कर सकता है क्योंकि हर एक दरबार में परस्पर विरोधी दलों और सिद्धान्तों के लोग रहते पाए हैं, और हैं भो; मुझे कुछ ऐसे उदाहरण बताए गए हैं कि कितने ही अवसरों पर राजा की प्रतिष्ठा को क्षति पहुँचाने वाली कार्यवाही करने के कारण अपने ही एक सदस्य को दण्ड देने के लिए समस्त भायाद उसके विरुद्ध संगठित हो गई थी। ऐसे प्रभाव का उपयोग करते हुए 'खेर' को या सामन्त-संघ को एकत्र कर लेना कोई कठिन काम नहीं था और जब देश पर विदेशियों का प्राक्रमण होता तो सब जाड़ेचा सामना करने के लिए डट जाते । परन्तु, पिछले वर्षों में राजाओं द्वारा अरबों, सिन्धियों और रोहेलों को अपने रक्षक वर्ग में प्रवेश देने की जो चाल पड़ गई है उससे उनके सरदारों में ईर्ष्या और जलन पैदा हो गयी, और फिर ये 'भाड़ के टट्ट' भी अपने मालिकों के लिए कम दुखदायी नहीं हैं। सामंत अपने स्वामी की प्रत्येक प्राज्ञा का पालन करने के लिए तत्पर रहते हैं, परन्तु यह पारस्परिक सहिष्णुता और व्यावहारिक सन्तुलन उस समय खो जाता है जब उसमें किसी प्रकार का बाहरी हस्तक्षेप होता है। अन्तिम राव भारमल का दुर्भाग्य प्राचीन रूढ़ियों को तोड़ने का ही दुष्परिणाम-जन्य उदाहरण है । मद्यपान की तीव्रता ने उसके सहज दुस्स्वभाव को और भी उग्र बना दिया था; और इन भाडेती विदेशियों के बल-बूते पर उसने अपने अधिकारों को परम्परागत परिसीमाओं को ठुकरा कर अपनी मनमानी को ही कानून बना लिया था। परन्तु, उसका वास्ता उन लोगों से पड़ा था जो अपने अधिकारों को अच्छी तरह जानते-पहचानते थे और उन्होंने प्रात्मसमर्पण करने के बजाय बटिश सत्ता को मध्यस्थ के रूप में आमन्त्रित किया था।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org