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________________ प्रकरण - २३; बांटा; भायार [ ४६३ बना सके तो इस समाज में आपसी सम्बन्धों की श्रृंखला दृढ़ हो सकेगी और जो भय छाए हुए हैं वे भी दूर हो जायेंगे। इस प्रकार हमने संक्षिप्त रूप में एक ऐसे राजा की असाधारण तसवीर प्रस्तुत की है जिसको पानी सोमा से बाहर कोई राजनोतिक अथवा शासन के अधिकार प्राप्त नहीं हैं और जो समाज के ढांचे को कायम रखने के लिए कमसे-कम राज्य-शक्ति का प्रयोग कर सकता है; न किसी को इनाम दे सकता है, न सजा दे सकता है; संक्षेप में, यह आयुधजीवी 'भायादों' का एक संघ है, जो एक बड़े वंश के सदस्य हैं और आपसी भय अथवा लाभ की भावना से प्रेरित होकर एक जगह मिल कर रहते हैं । झुगार से पहले भी ऐसा ही विधान था और इस प्रशस्त पुरुष के सम्मिलित हो जाने के बाद भी बहुत दिनों तक ऐसा ही चलता रहा। पश्चिमी अन्य राजपूत रियासतों और कच्छ की बसावट में अन्तर है और इसी कारण उनकी सरकारों और नीति में भी भिन्नता है, जो अब तक इस असाधारण सामन्ती संघ को इसकी प्राचीन स्वतन्त्रताओं के साथ जीवित रख सकी है, ऐसा हमको मानना चाहिए । जब तक मैंने कच्छ की यात्रा कर के यहां के इतिहास को न टटोल लिया और यहां के जानकारों से बातचीत न कर ली तब तक यह बात मेरी समझ में ही नहीं पा रही थी कि कोई ऐसा समाज भी हो सकता है क्या ? क्योंकि दूर बैठे-बैठे जब मुझे इनके कुछ काननों, विशेषतः स्वत्वहोन भूमि के पुनर्ग्रहण, अतिक्रमण आदि से परिचित कराया जाता तो मेरी यही धारणा दृढ़ होती रहती कि कोई भी ऐसी सरकार, जिसमें सामन्तवर्ग राजा से स्वतन्त्र हो, अधिक दिन नहीं टिक सकती। विभिन्नता और समानता दोनों ही दृष्टियों से मेरी दलील सही है; क्योंकि यदि ऐसी सरकार कहीं राजपूनाना को समीपता में आ पड़ती तो एक शताब्दो भी बर-करार न रह पाती। परन्तु, जाड़ेचों को भूमि एक ओर समुद्र से और दूसरी ओर महान् रण से घिरी होने के कारण अपने हिन्दू पड़ोसियों से भय-मुक्त रही, साथ ही, सभी मुसलमान यात्रियों को मुफ्त में मक्का पहुँचाने की प्रशंसनीय नीति अपनाने के फलस्वरूप उन्होंने मुसलिम-शक्ति से भी मेल कर लिया, इसीलिए किसी भी सुलतान ने क्रोधावेश में आ कर इस प्रदेश की यात्रा नहीं की। और, इस बात की पूरी सम्भावना थी कि जाड़ेचों की सामन्ती प्रथा में उनको 'भायाद' और भी कुछ शताब्दियों तक यथावत् चलती रहती यदि सौभाग्य से उनको एक महान् सभ्य, महत्वाकांक्षी और सतत प्रगतिशील शक्तिशाली राज्य का पड़ोस प्राप्त न हो जाता; मेरा प्राशय स्पष्टत: ब्रिटिश सरकार से है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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