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ग्रन्थकर्त्ता विषयक संस्मरण
[ S "मेवाड़ बरबादी की ओर तेजी से बढ़ रहा था, सभ्यता का प्रत्येक चिह्न जल्दी से लुप्त होता जाता था, खेत पड़त पड़े थे, शहर बरबाद हो गए थे, प्रजा मारीमारो फिर रही थी, ठाकुरों और जागीरदारों की नीयतें बिगड़ गई थीं और महाराणा व उसके परिवार को जीवन की साधारण से साधारण सुविधा भी सुलभ नहीं थी ।" "
एक रम्य प्रदेश के सामरिक वीर निवासियों को, जिनके स्वाभाविक सद्गुणों को प्रत्याचार भी विनष्ट नहीं कर पाए थे, इस प्रकार आक्रामकों के हाथों में पड़े देख कर उस युवा सैनिक की सोष्म और सूक्ष्मग्राही भावनाओं को गहरा आघात पहुंचा । वह १८०६ ई० के जून मास में हुई मेवाड़ के राणा भीमसिंह और दौलतराव सिंधिया की मुलाकात के समय स्वयं मौजूद था जब उदयपुर से छः मील की दूरी पर एकलिंगजी के मन्दिर में वह चिरस्मरणीय समझौता हुआ था कि जिसके परिणामस्वरूप राणा की पुत्री 'राजस्थान की पद्मिनी' कृष्णाकुमारी का अमानुषिक बलिदान हुआ; इस नाटक का वह भयावह दृश्य पूर्णरूप से उसकी आँखों के सामने ही सम्पन्न हुआ था । एक सामान्य कृषक पुत्र की दया पर निर्भर भारत के प्राचीन राजवंशी राणा की दयनीय उपस्थिति ने उसके मन पर एक अमिट छाप लगा दी। राणा की नज़रों में अपने महत्व को बढ़ाचढ़ा कर दिखाने के लिए सिन्धिया ने बृटिश राजदूत और उसके वर्ग को भी इस अवसर पर श्रामन्त्रित किया था। राजदूत मिस्टर मर्सर ( Mr. Mercer) कहते हैं "सम्मेलन में जब हम दौलतराव सिन्धिया के साथ गए और उसका (ले० टॉड का ) परिचय उदयपुर के राणा से कराया गया तब मैंने उस (ले० टॉड) का जो उत्साह देखा वह मुझे अच्छी तरह याद है । हिन्दुस्तान के प्राचीन उच्चकुलीन राणा और उसके साथियों का व्यक्तित्व वास्तव में बहुत प्रभावोत्पादक र, यद्यपि इससे पहले मैं भारत के प्रायः सभी दरबारों में उपस्थित रह चुका हूँ परन्तु जो वंश मुसलमानों की विजय से पूर्व 'हिन्दूपदपातशाह' की उपाधि का अधिकारी रह चुका है उसकी शान और सद्व्यवहार से अत्यधिक प्रभावित हुआ ।" स्वरचित 'मेवाड़ के इतिहास' में इस मुलाकात के विषय में कर्नल टॉड ने जो कुछ कहा है उससे स्पष्ट है कि यही वह क्षण था जब कि पहले पहल राजस्थान के पुनरुद्धार की उस उदार योजना के विचार का उसके मन में उदय हुआ जिसका बाद में वह मुख्य निमित्त बन गया। वह कहता है "इस अवसर पर 'सौ राजानों के वंशज' की मुसीबतों और उसके उदात्त व्यक्तित्व
था;
१ इतिहास १, पृ० ४५८; ४६६-७० |
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