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ग्रन्थका-विषयक संस्मरण बहुमूल्यता ज्ञात हो जाती है जिनके द्वारा वह पिंडारी-अभियान में महत्त्वपूर्ण सेवाएं सम्पन्न कर सका था।
मिस्टर मसर ने १८१० ई० में भारत छोड़ा और उनके स्थान पर सिन्धिया दरबार की नरवर में स्थित तत्कालीन रेजीडेन्सी पर मिस्टर रिचार्ड स्ट्रची नियुक्त हुए, जो दश वर्ष पहले ही देहली में लेफ्टिनेण्ट टॉड से परिचय प्राप्त कर चुके थे। अक्टूबर, १८१३ ई० में उसे कॅप्टेन के पद पर उन्नत किया गया और एस्कॉर्ट (escort) की कमान सम्हलाई गई। तदनन्तर अक्टूबर, १८१५ ई० में, मिस्टर स्ट्रची के दरबार छोड़ने से कुछ ही समय पूर्व कॅप्टेन टॉड को रेजीडेण्ट के द्वितीय सहायक के नागरिक पद के लिए नामांकित किया गया । मिस्टर स्ट्रची का कहना है कि इस पूरे समय में वह मुख्यतः सिन्धु और बुन्देलखण्ड तथा जमुना और नर्मदा के बीच के प्रदेशों से सम्बद्ध भौगोलिक सामग्री एकत्रित करने में व्यस्त रहा। वे सज्जन कहते हैं, 'मेरे पद से सम्बन्धित कर्तव्यों का इन प्रदेशों से निरन्तर सम्बन्ध बना रहता था और इस विस्तृत क्षेत्र के विषय में उसके भौगोलिक ज्ञान से मैंने बहुत लाभ उठाया। प्राप्त जानकारी को प्रस्तुत करने के लिए वह सदैव तत्पर रहता था, जो महत्व के अवसरों पर बहुत उपयोगी सिद्ध होती थी; सरकार ने भी उसके इस कार्य की बहुत प्रशंसा की है।'
राजपूताना की तत्कालीन दशा का उसने अपने महान ग्रन्थ में प्रभावशाली वर्णन किया है । १७३५ ई० में पहले-पहल चम्बल को पार कर के मरहठों ने मालवा में अपने थाने कायम कर लिए थे, और जल्दी ही टिड्डी दल की तरह नर्मदा को पार कर के विभिन्न रियासतों में घुल-मिल कर, उनके आपसी झगड़ों को बढ़ावा देकर तथा कभी एक को सहायता दे कर तो कभी दूसरे का पक्ष ले कर, अन्त में उन्होंने राजस्थान में अच्छी तरह अपने पैर जमा लिए थे। दिल्ली के निर्बल मोहम्मद शाह ने अपने राजस्व की 'चौथ' अथवा चतुर्थाश उनके हवाले कर दी थी जिससे उनको यहाँ तथा अन्यत्र भी कर उगाहने के लिए अवसर मिल गया । उनका नेता बाजीराव मेवाड़ में पहुँच गया और राणा को उससे सन्धि करने के लिए बाध्य होना पड़ा जिसके अनुसार उसने तीनों बड़े मरहठा नेताओं को कर देना स्वीकार किया। यह क्रम दस वर्ष तक चलता रहा जब तक कि वे आक्रमणकारी अपनी मांग को बढ़ाते रहने की स्थिति में बने रहे । अवर रियासतों की दुर्नीति का अनुसरण करते हुए राणा ने भी हुल्कर को अपने एक झगड़े में शामिल किया (जिसमें उसको लगभग दस लाख सिक्के दिए) और उसी समय (१७५० ई०) से मरहठों ने राज
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