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________________ ४१६ ] पश्चिमी भारत की यात्रा है । ये उसी समय के और उन्हीं कारीगरों के द्वारा बने हैं, जिन्होंने आस्तिकों के प्राचीन 'हर्षद- माता' के मन्दिर का निर्माण किया था। इसी के भीतर एक पार्श्वनाथ की मूर्ति भी थी और एक पत्थर पर चौबीस तीर्थङ्करों अथवा देवत्व - प्राप्त जैन - प्रमुखों की मूर्तियां भी उभरी हुई थीं । महाकाल का पवित्र वृक्ष अप्रत्यक्ष रूप से परन्तु अवश्यम्भावेन इन इमारतों पर फैलता जा रहा है और ऐसा लगता है कि कुछ ही वर्षों में वह इन दोनों पर विजय प्राप्त कर लेगा । इन खण्डहरों से मैं बावड़ी पर गया जिसे देख कर प्राचीन जेठवों के कोष की पुष्कलता और हृदय की उदार भावना का पता चलता है; यहाँ मेरी शिलालेखों की शोध कुछ फलवती हुई क्यों कि यहाँ एक शिलालेख संवत् १३ (सौ) का मिला जो केवल इसके जीर्णोद्धार ( मात्र ) का प्रमाण प्रस्तुत कर रहा था । गूमली में सब से अधिक आकर्षक और पूर्ण अवस्था में कोई पुरावशेष का चिह्न है तो वह रामपोल अथवा 'राम का द्वार' है । हम आगे चल कर देखेंगे कि राम के सेनापति हनुमान् से ही जेठवा लोग अपनी उत्पत्ति मानते हैं । रामपोल पश्चिमी दरवाजा है, परन्तु इसके निर्माण एवं शिल्प का ठीक-ठीक चित्रण करने में केवल पेंसिल ही सक्षम हो सकती है । प्रत्येक और तीन चौकोर खम्भों पर पत्थरों से चुने हुए शीर्षपट्ट टिके हुए हैं और दोनों तरफ अत्यन्त प्राचीन प्रकार की मेहराबें हैं; इनसे बिलकुल विपरीत दो नोकदार मेहराबें भी हैं, जो प्रत्यक्ष ही इनसे क्रम पुरानी हैं; परन्तु जब इस बात के असंदिग्ध प्रमारण मौजूद हैं कि गूमली कस्बा लगभग आठ सौ वर्षों से उजाड़ पड़ा है तो हम यह निष्कर्ष निकाले बिना कैसे रह सकते हैं कि वे मेहराबें हिन्दू प्रणाली की ही हैं ? यहां सर्वत्र ही अत्यन्त असाधारण कोरणी का काम दिखाई देता है; कुछ भागों में, बाडोली और अन्य स्थानों के समान, प्राणियों में श्रेष्ठ, मनुष्य को पशुओं में श्रेष्ठ [सिंह ? ] से युद्ध करता हुआ दिखाया गया है; अन्यत्र वह घोड़े पर सवार है; घोड़ा तो पिछले पैरों पर खड़ा है और सवार अपने धनुष से तीर छोड़ रहा है । फिर कुछ पुरुषों और स्त्रियों की मण्डलियाँ हैं, जो किसी पौराणिक गाथा को प्रस्तुत कर रही हैं; परन्तु इनसे भी विचित्र पॉन [ Pan] ' जैसे वन देवतानों " ग्रीस की पौराणिक कथाओं में Pan को गडरियों, शिकारियों प्रौर देहातियों का देवता माना गया है। वह पशुओं, भेडों, जंगली जानवरों और मधु मक्खियों का रक्षक है और वन-देवताओं में प्रमुख है । बाँसुरी का श्राविष्कर्ता भी उसे ही माना जाता है, जिससे Pans' pipes (पॉन की बांसुरी ) प्रसिद्ध है। कहते हैं कि वह अचानक भय उत्पन्न कर देता है, इसी से अंग्रेजी में भय का वाचक Panic शब्द बना है । उसके शिर पर दो छोटे सींग होते हैं और उसका प्रधोभाग बकरे जैसा होता है । - N. S. E; p. 971 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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