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प्रकरण - १७; दामोदर महादेव का मंदिर [३८५ कर एक कुंड बना दिया गया है, जिसमें मन्दिर में जाने के लिए सीढियां चढने के पहले यात्री स्नान करके पवित्र हो लेते हैं । मन्दिर के चारों ओर ऊंची-ऊंची दीवारें हैं और वहाँ धर्मशाला बनी हुई है, जिसमें थके-मांदे यात्री विश्राम लेते हैं । एक ऊपर चढ़ती हुई सोपानसरणि से दूसरे कुण्ड में जाने का रास्ता है, जो चट्टान को काट कर बनाया गया है और इसका अग्रभाग टांकी से कटे हुए पत्थरों का बना हुआ है। इसके विभिन्न भागों में टूटी-फूटी मूर्तियां दिखाई देती हैं, जिनको मुसलमानों ने नष्ट-भ्रष्ट कर दिया । यह रेवती-कुण्ड कहलाता है और कहते हैं कि जूनागढ़ के प्राचीन यदु-वंशो स्वामियों ने इसको अपने महान् पूर्वज कन्हैया को अर्पित कर दिया था । मेरा बड़ा सौभाग्य था कि मुझे एक शिलालेख [परि० ६] मिल गया, जो विध्वंसकों की दृष्टि से बच गया था। इस लेख से हमें इस मन्दिर को शिव-मन्दिर का नाम देने की असंगति का पता चलता है क्योंकि देवत्व-प्राप्त यदु-नेता कन्हैया का बचपन का एक नाम दामोदर भी है-ऐसा लगता है कि पाठवीं शताब्दी में जब शैवों और वैष्णवों में घोर साम्प्रदायिक झगड़े हुए तो किसी शैव ने अपने उपास्य देवता की मति भी यहाँ स्थापित कर दी । कुण्ड के समीप ही एक छोटे से मन्दिर में कन्हैया के भैया बलदेव की मूर्ति भी विराजमान है, जिसके हाथों में गदा, चक्र और शंख हैं।' यहां के ब्राह्मणों का अज्ञान देख कर भी आश्चर्य होता है। ये लोग जिन देवताओं का पूजन करते हैं उनके साधारण चिह्नों एवं गुणों के विषय में भी कुछ नहीं जानते । नदी के उस पार कुछ ऐसे यात्रियों की समाधियां बनी हुई . हैं जिनको इस पवित्र पर्वत के उपान्त में दिवंगत होने का सौभाग्य प्राप्त हमा था। ऐसा लगता है कि सौराष्ट्र के यदुवंशी राजाओं का समाधिस्थल भी यही रहा है; शिलालेख को देखते हुए इस मत की और भी सम्पुष्टि हो जाती है। विष्णु (जिसके गुणों का कन्हैया में प्राधान किया गया है) के इस पावन सरो- . वर का अधिष्ठातृ-देवता होने के दो निमित्त हैं; पहला यह कि वह इस महान जाति का प्रादि पुरुष है और दूसरे, मृतकों के प्रात्मा को उसके निर्दिष्ट स्थान पर पहुँचाने के गुण उसमें विद्यमान हैं। यह शिलालेख कितने ही दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है। इसमें बहुत से ऐसे राजाओं के नाम उत्कीर्ण हैं जिनका इस क्षेत्र में राज्य रहा है और जो परम्परागत बातों में प्रसिद्ध भी है, विशेषतः राव माण्डलिक और खंगार जिनसे कितनी ही कथाएं सम्बद्ध हैं। पहले नाम
१ बलराम का प्रायुध तो हल प्रसिद्ध है, चतुर्भुज विष्णु के आयुध अवश्य ही शंख, चक्र,
गदा और पद्म हैं । पता नहीं, टाड साहब कैसे इस मूर्ति को बलराम की मूर्ति मान बैठे हैं ?
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