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________________ प्रकरण - १७; प्राचीन अक्षरों की पहचान [३८३ चिह्न हैं, जो सम्भवतः उस समय जूनागढ़ का यदुवंशी राजा था। लिपिविशेषज्ञ अब मीलान करके देखेंगे कि कितने अक्षर प्राचीन ग्रीक और कैल्टो-एट स्कन (Celto etruscan) अक्षरों से मिलते हैं, जैसेXTET/OOTERIPADMRO0Ey फिर, कुछ 'समारिती'' (Samaritan) अक्षर भी हैं, जैसे FKJTAY४DH अलिफ़ बे पे हे ऐन नून तोय तोय [जोय] इनमें से प्रत्येक के साथ शिलालेख में बहुत से अन्य संयुक्ताक्षर भी हैं। मैं यह जानता हूँ कि यदि किसी बात को सिद्ध करने के लिए अत्यधिक प्रयत्न किया जाय तो कुछ भो सिद्ध नहीं हो पाता, परन्तु इस कथन में भी थोड़ा तथ्य नहीं है कि 'सत्यांश के आधार पर भी शेष सम्पूर्ण सत्य का आभास प्राप्त हो सकता है।' इसी लिए मैं अगुवा लिपिशास्त्री बनने का दुस्साहस कर रहा हूँ। विषय को सरल बनाने के प्रयत्न में मैंने ऐसे अक्षर चुने हैं जो असंयुक्त और स्वतंत्र मालूम दिये, फिर इनसे संयुक्ताक्षरों का पता लगाया। प्रथम (स्वरों) की संख्या सोलह ही है, परन्तु व्यञ्जन अनेक हैं। स्वरों में अल्पप्राण ग्रीक अक्षर 0 (omicron) के ही मुझे सत्रह से कम व्यञ्जन नहीं मिले; इसी प्रकार अन्य स्वरों के भी अनेक व्यञ्जन हैं, यदि इस शोध का कोई फल नहीं निकलता है तो मेरा समय व्यर्थ गया समझिए; परन्तु, जब मैं यह कहना चाहता हूँ कि इनमें से दो अक्षर अर्थात् YE जो एक शिलालेख के अन्त में आते हैं वे नक्काशी के काम में नामाक्षर-भित्ति (Monogram) बनाते हैं और ग्रीक हरक्यूलोज़ की प्राकृति एवं समस्त गुणों को व्यक्त करते हैं तो मुझे यह पाशा बँधे बिना नहीं रहती कि सीरिया की प्राचीन लिपि के सूक्ष्म विश्लेषण एवं मीलान के फल-स्वरूप कुछ और भो पाश्चर्यजनक परिणाम निकलेंगे। मैं यह नहीं कह सकता कि मैं ही पहला व्यक्ति है जिसने इन अक्षरों, ग्रीक लिपि एवं प्राचीन चौकोर अक्षरों में समानता के दर्शन किए हैं, क्योंकि प्राधी शताब्दी पूर्व उत्तरी भारत से हमारे प्रथम सम्पर्क के अवसर पर जिस पहले अंग्रेज़ ने फीरोज़ के प्राचीन महल में स्तम्भ का . पैलेस्टाइन के उत्तरपूर्वीय प्रदेश से सम्बद्ध । " Transactions of the Royal Asiatic Society, Vol. III, p. 139. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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