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________________ ३८० ] पश्चिमी भारत की यात्रा परिवर्तन के प्रकार से स्पष्ट दिखाई देता है कि मुसलमानों ने खापरा की अपवित्र गुफा को शेख अली दरवेश की दरगाह में बदल दिया है । वही दुर्बोध्य अक्षर, जिनके बारे में में कई बार कह आया हूँ, यहाँ भी दीवारों पर खुदे हुए हैं । उनके नमूने ये हैं J XLD8J}617716[+hē b परन्तु अब अपने को अवन्तिगिरि अथवा 'सुरक्षा के पहाड़' के मार्ग पर चलना है, जो गिरिराज अथवा 'पर्वतों के राजा' के पचीस शास्त्रीय नामों में से एक है । 'गिरिराज' को प्रायः गिरनार कहते हैं; 'गिरि' अर्थात् पर्वत और 'नारि' (nari) का भी वही अर्थ है, जो 'स्वामी' अथवा मालिक का है। दूसरे नाम ये हैं, उज्जयन्त गिरि ( Ujanti Gir ) अथवा 'पापों का नाश करने वाला पर्वत'; हर्षद शिखर (Harsid Sikra ) 'हर्षद का शिखर' अथवा योगियों का स्वामी शिव; 'स्वर्णगिरि' अथवा सोने का पर्वत; 'श्रीढांक गिरि ( Sri-dhank-Gir) अथवा समस्त अन्य पर्वतों को ढाँकने वाला पर्वत, 'श्रीसहस्रकोमल' अथवा सहस्र- दल के समान कोमल; 'मोरदेवीपर्वत' अथवा ग्रादिनाथ की माता मोर [मरु] देवी का पर्वत; 'बाहुबलि तीर्थ' अथवा प्रादिनाथ के द्वितीय पुत्र बाहुबलि का पवित्र स्थान; इत्यादि । परन्तु सब से अधिक सार्थक नाम 'स्वर्ण' है, जो यहाँ की नदी या निर्झरिणी के लिए भी समान रूप से प्रयुक्त हुआ है, जिसमें कालीकाली चट्टानों और पर्वत की दरारों से बह कर आने वाले अनेक झरने मिलते हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस आदिकालीन पर्वत में वह बहुमूल्य धातु अवश्य प्राप्य है; यह केवल इस लिए नहीं कि यह बात इसके नाम 'सोनारिका' अथवा 'स्वर्णप्रवाहिनी' के अर्थ के अनुरूप है, परन्तु राणावंश के इतिहास के आमुख में एक ऐसी कथा भी है जिसके अनुसार सौराष्ट्र के शक्तिशाली यदु (वंशी) राजा अपनी पुत्री एक अनजान अतिथि को इसलिए ब्याह दी थी कि 'वह मूल्यवान् धातु का अन्वेषण करने की कला जानता था और उसने गिरनार की पहाड़ियों में ऐसे स्थल बताए भी थे, जहाँ सोना विद्यमान था ।' अच्छा, तो आइये, अब 'जूनागढ़' के किले के पूर्वीय मेहराबदार द्वार से सीढ़ियों द्वारा आगे चलें । घोड़ों के व्यापारी सुन्दरजी का विशाल वैभव यहाँ से आरम्भ हो कर ऐसे निर्माण कार्य में आगे बढ़ा है, जिससे उसका नाम तो अमर हो ही जायगा, साथ ही इस यात्रा में अपने परमाराध्य तक पहुँचने के मार्ग को सुगम बनाने के लिए उसे यात्रियों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता रहता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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